जिस प्रकार जीवात्मा इस शरीर में बाल अवस्था से युवा अवस्था और वृद्ध अवस्था को निरन्तर अग्रसर होता रहता है, उसी प्रकार जीवात्मा इस शरीर की मृत्यु होने पर दूसरे शरीर में चला जाता है, ऎसे परिवर्तन से धीर मनुष्य मोह को प्राप्त नहीं होते हैं।
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मै क्युकी उनके साथ रहती हूँ तो मुझ पर इस वृद्ध अवस्था में कुछ ज्यादा डिपेण्ड करने लगी हैं और मुझे खांसी भी आ जाये तो वो नर्वस हो जाती हैं कई बार खिजलाहट में, मै कह बैठती हूँ, माँ तुम एक पुड़ियाँ बना कर मुझे उसमे रख लो ।