किसी तरह अपने और अपने बाल-बच्चों के लिये जीवन-यापन भर को जुटा पाने के दबाव में अपनी भरी जवानी से लाचार बुढ़ापे तक जीवन भर प्रतिदिन जल्दी सुबह से देर शाम तक एक घर से दूसरे घर तक घूम-घूम कर दूसरों के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने वाला प्राइवेट विद्यालय का कम वेतन पाने वाला शिक्षक जब अपने ख़ुद के बच्चों को पढ़ाने के लिये समय नहीं निकाल पाता, तो और भी पस्त हो जाता है.
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अभावग्रस्त आदमी जिस रोजी-रोटी की तलाश में कोई भी कार्य करने को तैयार रहता है, उसी को वेतन की गारण्टी मिल जाने के बाद वह क्यों कार्य के प्रति दृष्टिकोण में यू-टर्न ले लेता है?मैने देखा है कि प्राथमिक विद्यालय में १५००० वेतन पाने वाला अध्यापक चौराहे पर बैठकर गप करने और नेतागीरी में समय काटता है, और ३००० संविदा वेतन पाने वाला अस्थायी शिक्षामित्र एक साथ ३-४ कक्षाओं को सम्हालने की जी-तोड़ कोशिश कर रहा होता है।
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अभावग्रस्त आदमी जिस रोजी-रोटी की तलाश में कोई भी कार्य करने को तैयार रहता है, उसी को वेतन की गारण्टी मिल जाने के बाद वह क्यों कार्य के प्रति दृष्टिकोण में यू-टर्न ले लेता है?मैने देखा है कि प्राथमिक विद्यालय में १५००० वेतन पाने वाला अध्यापक चौराहे पर बैठकर गप करने और नेतागीरी में समय काटता है, और ३००० संविदा वेतन पाने वाला अस्थायी शिक्षामित्र एक साथ ३-४ कक्षाओं को सम्हालने की जी-तोड़ कोशिश कर रहा होता है।
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अविश्वास प्रस्ताव में उठा था मामला विधानसभा के शीतकालीन सत्र के दौरान कांग्रेस द्वारा पेश किए गए अविश्वास प्रस्ताव में खदानों में करोड़ों रुपए के घोटाले के आरोप लगाए गए थे, इस प्रस्ताव में ही कांग्रेस नेताओं ने खदान मालिक सुधीर शर्मा के नाम का जिक्र किया था, साथ ही सरकार से यह पूछा था कि पांच साल पहले तक कुछ हजार रुपए का वेतन पाने वाला सुधीर शर्मा अचानक ही करोड़ों रुपए का मालिक कैसे बन गया।