अभी कार्पोरेट के आईटी डिपार्टमेंट ब्लैकबेरी इंटरप्राइज सर्वर से बिज़नेस संबंधित डेटा का नियंत्रण रहता है लेकिन इस सॉफ्टवेयर के आ जाने के बाद वह इस पर तो नियंत्रण रख सकेगा लेकिन व्यकिगत मेसेजों और सोशल नेटवर्किंग तथा फोटो पर नहीं।
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पहले हमें स्वयं बदलना चाहिए जब ही किसी को बदलने का आग्रह करने का अधिकार रख सकते हैं उपदेश देना या सलाह देना तब ही ठीक होगा जब हम व्यकिगत रूप से उस पर अमल भी करते हों. टिप्पड़ी के लिए धन्यवाद
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* किसी एक “ वाद ” को मानने वाले माता पिता द्वारा पैदा की गयी संतान अपने माता पिता के “ वाद ” को मानने के लिए बाध्य / विवश है अथवा वह अपने खुद के एक व्यकिगत “ वाद ” का चयन कर सकती है?
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व्यकिगत रुप से मैं 21 अक्तूबर की तारीख को भारत के स्वतंत्रता दिवस के रुप में मनाये जाने का पक्षधर हूँ-क्योंकि इसी दिन 1943 को “ स्वतंत्र भारत की अन्तरिम सरकार ” (आरज़ी हुकूमत-ए-आज़ाद हिन्द / Provisional Government of Free India) की स्थापना हुई थी ।
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उपरवाले मे आस्था होना न होना यह व्यकिगत प्रश्न है, पर इस प्रकार सर्व शाक्तमान् (जिसे हर व्यक्ति अपने पसदीदा नाम से पुकारना पसंद करता है) पर अविश्वास प्रगट कर लोगों की भावनाओं को ठेस पहुँचा कर प्रो राव को कुछ बेवकूफों क समर्थन मिलेगा और कुछ नहीं.
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विस्फोट पर डेरा सच्चा सौदा, बाबा राम देव, साध्वी प्रज्ञा आदि पर आरोप लगते रहे हैं पर व्यकिगत कुंठा से हफ्ता न मिलने से,प्रेस वार्ता मैं गिफ्ट न मिलने से,शाम को बुला कर शराब न पिलाने से कई कुत्ते पत्रकार हिन्दू साधू संतो का अपमान करते रहते हैं.
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उसके बाद अलबत्ता कई सक्षम लोगो ओर बड़े बुद्धिजीवियों के आलोक जी के पक्ष में कई वक्तव्य आये पर हज़म नहीं हुए. जाने क्यों........ अपनी ये पीड़ा जब एक साहब को बताई तो वे बोले रचना ओर उसके लेखक को अलग रखो.... व्यकिगत जीवन नितांत निजी होता है......
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विस्फोट पर डेरा सच्चा सौदा, बाबा राम देव, साध्वी प्रज्ञा आदि पर आरोप लगते रहे हैं पर व्यकिगत कुंठा से हफ्ता न मिलने से, प्रेस वार्ता मैं गिफ्ट न मिलने से, शाम को बुला कर शराब न पिलाने से कई कुत्ते पत्रकार हिन्दू साधू संतो का अपमान करते रहते हैं.
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बेटी मायके जाकर मै तुम्हारी मेहमान हूँ यह न जताते हुए घर के सभी सदस्यों से घुल मिल कर पहले की तरह आत्मीयता से पेश आये, अगर इस प्रकार की छोटी छोटी बातों का ध्यान रखकर किसी के व्यकिगत जीवन में दखल न देते हुए चले तो तभी रिश्ते मधुर बने रह सकते है!
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' साहित्यिकी ' के जुड़ कर ही मैंने सुकीर्ति जी को जाना, पहचाना और समझा … हस्त लिखित पत्रिका अपने आप में साहित्य जगत के लिए एक विशिष्ट और अभिनव प्रयोग है और वह भी महिलाओं के लिए … इसके लिए पत्रिका और सभी सदस्याएँ सदा उनकी आभारी रहेंगी … व्यकिगत तौर पर उनसे मिलने का मुझे सौभाग्य न मिल पाया … ईश्वर की जैसी इच्छा ….