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व्यवहार प्रक्रिया संहिता उदाहरण वाक्य

उदाहरण वाक्य
31.परमानन्द अग्रवाल बनाम अरविन्द कुमार गुप्ता के केस में माननीय इलाहाबाद उच्च न्यायालय की एकल पीठ द्वारा व्यवहार प्रक्रिया संहिता की धारा 115 के संबंध में यह अभिमत व्यक्त किया गया है कि निगरानीकर्ता न्यायालय के समक्ष यह सिद्ध करने में असफल रहा कि धारा 115 के अर्न्तगत निहित क्षेत्राधिकार का प्रयोग न किये जाने से उसे अपूर्णनीय क्षति होगी और इस आधार पर याचिका निरस्त की गयी।

32.विपक्षी की ओर से उपरोक्त वर्णित मोदी स्पिनिंग एडं वीविंग मिल्स के केस में माननीय इलाहाबाद उच्च न्यायालय की एकल पीठ द्वारा व्यवहार प्रक्रिया संहिता के आदेश 14 नियम 5 और धारा 115 के प्राविधानों का उल्लेख करते हुये यह अभिमत व्यक्त किया गया कि अतिरिक्त वाद बिन्दु सृजित किये जाने के लिये प्रस्तुत प्रार्थना पत्र निरस्त करने के आदेश के विरूद्ध विधि अनुसार धारा 115 व्यवहार प्रक्रिया संहिता के अर्न्तगत कोई निगरानी पोषणीय नहीं है।

33.विपक्षी की ओर से उपरोक्त वर्णित मोदी स्पिनिंग एडं वीविंग मिल्स के केस में माननीय इलाहाबाद उच्च न्यायालय की एकल पीठ द्वारा व्यवहार प्रक्रिया संहिता के आदेश 14 नियम 5 और धारा 115 के प्राविधानों का उल्लेख करते हुये यह अभिमत व्यक्त किया गया कि अतिरिक्त वाद बिन्दु सृजित किये जाने के लिये प्रस्तुत प्रार्थना पत्र निरस्त करने के आदेश के विरूद्ध विधि अनुसार धारा 115 व्यवहार प्रक्रिया संहिता के अर्न्तगत कोई निगरानी पोषणीय नहीं है।

34.संक्षेप में तथ्य इस प्रकार हैं कि मूल वाद में प्रतिवादी श्री आर0पी0 सिंह की ओर से एक प्रार्थना पत्र 93ग-2 व्यवहार प्रक्रिया संहिता के आदेश 14 नियम 5 के अर्न्तगत इस आशय से अधीनस्थ न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया गया कि प्रतिवादी ने अपने प्रतिवाद पत्र 15ए तथा अतिरिक्त प्रतिवाद पत्र 54ए के प्रस्तर 16, 17,18 व 6 में न्यायालय के क्षेत्राधिकार और वाद पोषणीय न होने की आपत्ति के साथ ही वाद आदेश 7 नियम 11 व्यवहार प्रक्रिया संहिता के प्राविधानों से बाधित होने के संबंध में स्पष्ट उल्लेख किया है।

35.संक्षेप में तथ्य इस प्रकार हैं कि मूल वाद में प्रतिवादी श्री आर0पी0 सिंह की ओर से एक प्रार्थना पत्र 93ग-2 व्यवहार प्रक्रिया संहिता के आदेश 14 नियम 5 के अर्न्तगत इस आशय से अधीनस्थ न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया गया कि प्रतिवादी ने अपने प्रतिवाद पत्र 15ए तथा अतिरिक्त प्रतिवाद पत्र 54ए के प्रस्तर 16, 17,18 व 6 में न्यायालय के क्षेत्राधिकार और वाद पोषणीय न होने की आपत्ति के साथ ही वाद आदेश 7 नियम 11 व्यवहार प्रक्रिया संहिता के प्राविधानों से बाधित होने के संबंध में स्पष्ट उल्लेख किया है।

36.जहां तक निगरानीकर्तागण द्वारा ध्यानाकर्षित परवेज अख्तर एवं अन्य बनाम पंचम अपर जिला जज आगरा एवं अन्य उपरोक्त के प्रकरण में माननीय उच्च न्यायालय द्वारा दिये गये निर्णय का सम्बन्ध है, माननीय उच्च न्यायालय द्वारा स्पष्ट रूप से यह अवधारित किया गया है कि अधिवक्ता आयुक्त की नियुक्ति स्थल निरीक्षण के सम्बन्ध में नियुक्त किया जाना आदेश 26 नियम 9 व्यवहार प्रक्रिया संहिता के प्राविधान के अनुक्रम में वस्तुतः एक स्वविवेकीय अधिकार है जिसे न्यायालय उक्त निर्णय की धारा-11 में उपबन्धित तथ्यों के अनुक्रम में आवश्यकता अनुसार प्रयोग में लाने के लिए स्वतन्त्र है।

37.यह भी कहा गया है कि न्यायालय द्वारा पारित आदेश में महत्वपूर्ण अवैधानिकता बरती गयी है और न्यायिक मस्तिष्क का प्रयोग नहीं किया गया है, जबकि प्रतिवादी द्वारा अपने प्रतिवाद पत्र 15ए तथा अतिरिक्त प्रतिवाद पत्र 54ए में स्पष्ट रूप से वाद की पोषणीयता और न्यायालय के क्षेत्राधिकार तथा आदेश 7 नियम 11 व्यवहार प्रक्रिया संहिता के संबंध में स्पष्ट रूप से आपत्तियां उठायी गयी थी और न्यायालय ने प्रश्नगत आदेश पारित करके इस बात को नजरन्दाज कर दिया है कि ये दोनों आपत्तियां पक्षकारों के बीच उत्पन्न विवाद के यथोचित निस्तारण के लिये अत्यन्त आवश्यक हैं।

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