महापुरुष अपने संकेत, वचन और क्रिया से ऐसी कोई बात प्रकट न करें जिससे उन सकाम पुरुषों की शास्त्रविहित शुभ कर्मों में अश्रद्धा, अविश्वास या अरूचि पैदा हो जाए और वे उन कर्मों का त्याग कर दें, क्योंकि ऐसा करने से उनका पतन हो सकता है।
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भावार्थ: परमात्मा के स्वरूप में अटल स्थित हुए ज्ञानी पुरुष को चाहिए कि वह शास्त्रविहित कर्मों में आसक्ति वाले अज्ञानियों की बुद्धि में भ्रम अर्थात कर्मों में अश्रद्धा उत्पन्न न करे, किन्तु स्वयं शास्त्रविहित समस्त कर्म भलीभाँति करता हुआ उनसे भी वैसे ही करवाए॥ 26 ॥
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भावार्थ: परमात्मा के स्वरूप में अटल स्थित हुए ज्ञानी पुरुष को चाहिए कि वह शास्त्रविहित कर्मों में आसक्ति वाले अज्ञानियों की बुद्धि में भ्रम अर्थात कर्मों में अश्रद्धा उत्पन्न न करे, किन्तु स्वयं शास्त्रविहित समस्त कर्म भलीभाँति करता हुआ उनसे भी वैसे ही करवाए॥ 26 ॥
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महापुरुष अपने संकेत, वचन और क्रिया से ऐसी कोई बात प्रकट न करें जिससे उन सकाम पुरुषों की शास्त्रविहित शुभ कर्मों में अश्रद्धा, अविश्वास या अरूचि पैदा हो जाए और वे उन कर्मों का त्याग कर दें, क्योंकि ऐसा करने से उनका पतन हो सकता है।
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जोषयेत्सर्वकर्माणि विद्वान्युक्तः समाचरन् ॥ भावार्थ: परमात्मा के स्वरूप में अटल स्थित हुए ज्ञानी पुरुष को चाहिए कि वह शास्त्रविहित कर्मों में आसक्ति वाले अज्ञानियों की बुद्धि में भ्रम अर्थात कर्मों में अश्रद्धा उत्पन्न न करे, किन्तु स्वयं शास्त्रविहित समस्त कर्म भलीभाँति करता हुआ उनसे भी वैसे ही करवाए॥ 26 ॥ प्रकृतेः क्रियमाणानि गुणैः कर्माणि सर्वशः ।
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जोषयेत्सर्वकर्माणि विद्वान्युक्तः समाचरन् ॥ भावार्थ: परमात्मा के स्वरूप में अटल स्थित हुए ज्ञानी पुरुष को चाहिए कि वह शास्त्रविहित कर्मों में आसक्ति वाले अज्ञानियों की बुद्धि में भ्रम अर्थात कर्मों में अश्रद्धा उत्पन्न न करे, किन्तु स्वयं शास्त्रविहित समस्त कर्म भलीभाँति करता हुआ उनसे भी वैसे ही करवाए॥ 26 ॥ प्रकृतेः क्रियमाणानि गुणैः कर्माणि सर्वशः ।
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समाधि के अभ्यास से ऐसा समाधिस्थ पुरुष जब समाधि में रहता है तो उसे सुषुप्ति अवस्था की भांति संसार का बिलकुल भान नहीं रहता और जब वह समाधि से उठकर कार्यरत होता है तो बिना कामना, संकल्प, कर्तापन के अभिमान के ही सारे कर्म होते रहते हैं और उसके वे सभी कर्म शास्त्रविहित होते हैं.
38.
दीखने में ऊपरी तौर पर काव्य का संपूर्ण ढाँचा कथात्मक लंबी मुक्तक कविताओं के संग्रह जैसा है, जिसमें प्रत्येक पात्र (स्त्री-पात्र) की कथा स्वतंत्रा रूप से प्रायः जन्म लेती और वहीं समाप्त हो जाती है, प्रबंध काव्य के लिए आवश्यक शास्त्रविहित कथावस्तु के विकास, उत्थान-पतन और फल-परिणाते आदि की नियमित संरचना का पालन यहाँ नहीं किया गया है।
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काकपद (सं.) [सं-पु.] 1. किसी वाक्य में छूटे हुए शब्द का स्थान बताने के लिए पंक्ति के नीचे बनाया जाने वाला चिह्न ; हंसपद ; त्रुटिका (^) 2. कौए के पद का परिमाण जो शिखा का शास्त्रविहित परिमाण है 3. एक रतिबंध 4. हीरे का एक दोष।
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दीखने में ऊपरी तौर पर काव्य का संपूर्ण ढाँचा कथात्मक लंबी मुक्तक कविताओं के संग्रह जैसा है, जिसमें प्रत्येक पात्र (स्त्री-पात्र) की कथा स्वतंत्रा रूप से प्रायः जन्म लेती और वहीं समाप्त हो जाती है, प्रबंध काव्य के लिए आवश्यक शास्त्रविहित कथावस्तु के विकास, उत्थान-पतन और फल-परिणाते आदि की नियमित संरचना का पालन यहाँ नहीं किया गया है।