इसलिए किसी क्षेत्र के पंचांग को देखकर पुरोहितगण अपने-अपने क्षेत्र में उस ग्रह के उदयास्त पर विचार किए बिना फैसला सुना देते हैं जो शास्त्र विरुद्ध है।
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मनसा, वाचा, कर्मणा कुछ भी ऐसा न हो जो शास्त्र विरुद्ध हो, जो हिंसा में आता हो, जिससे किसी को पीड़ा हो.
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इसलिए किसी क्षेत्र के पंचांग को देखकर पुरोहितगण अपने-अपने क्षेत्र में उस ग्रह के उदयास्त पर विचार किए बिना फैसला सुना देते हैं जो शास्त्र विरुद्ध है।
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जिसका प्रमाण राजा भानुप्रताप की रसोई में धोखे से मानव-मांस का मिला देना, रावण जैसे विद्वान् का शास्त्र विरुद्ध कर्मों में लिप्त होजाना आदि …..
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मनमुखता, शास्त्र विरुद्ध विचार को महत्व न दें और शास्त्र अनुरूप विचार को छोड़ें नहीं, तो हो गया और तीसरा फिर नि: संकल्प हो जायें ।
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यदि किसी कारण व्रत बिगड़ जाए, छूट जाए या व्रत के दिन कोई शास्त्र विरुद्ध कर्म हो जाए तो पहले व्रत के लिए प्रायश्चित करें, फिर व्रतारंभ करें।
37.
वर्तमान के सन्तों व महन्तों को स्वयं ही ज्ञान नही कि हम जो शास्त्र विरुद्ध साधना कर तथा करवा रहे हैं यह कितनी भयंकर कष्ट दायक दोनों (गुरु जी व शिष्यों)
38.
जब वह 40 (चालीस) वर्ष का हुआ तब उस को अपने चार पूर्वज जो शास्त्र विरुद्ध साधना करके पितर बने हुए थे तथा कष्ट भोग रहे थे, दिखाई दिए।
39.
उस दिन की बात उसके दिन में बैठ गयी कि इन्हें बेटे की कमाई से मतलब है की उसपर इनका पूरा अधिकार होगा और मेरा कमाना और करना इन्हें शास्त्र विरुद्ध लगता है.
40.
वर्तमान के सन्तों व महन्तों को स्वयं ही ज्ञान नही कि हम जो शास्त्र विरुद्ध साधना कर तथा करवा रहे हैं यह कितनी भयंकर कष्ट दायक दोनों (गुरु जी व शिष्यों) को होगी।