राष्ट्रीय सलाहकार परिषद का गठन कर सरकार ने एक छोटे पैमाने पर यह काम जरूर किया है, लेकिन परिषद के दायरों से बाहर भी शिष्ट समाज में कई तरह के विचार और धारणाएं होती हैं।
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और किसी परमावश्यक स्थल पर दो-चार ग्राम्य शब्दों के आ जाने से ही भाषा ग्रामीण हो जाती है या क्या? जो शिष्ट समाज की बोलचाल की भाषा होती है, लिखित भाषा वही हुआ करती है।
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वह करुणाविहीन हो कर स्वार्थसिद्धि के लिए हिंसा का, छल का, लूट का, बलात्कार का यानी कि हर अनैतिक कार्यों का सहारा लेता है जो कि किसी भी शिष्ट समाज के विरुद्ध नज़र आते हैं।
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शिष्टाचार की शिक्षा हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) ने शिष्ट व्यक्ति, शिष्ट समाज बनने को असाधारण महत्व दिया और अपने अनुयायियों को उत्तम शिष्टाचार (Etiquette) सिखाए, जैसे: ● आम हालात में विनम्र, शिष्ट चाल चलो।
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जुआ खेलना, शराब पीना, दीन-दुखियाँ को पीड़ित करना, धोखा देना, झूठ बोलना आदि दुर्गुण उनके स्वभाव में मनुष्य में ऐसे ही दुर्गुणों का उदय होता है और शिष्ट समाज में ऐसे लोगों की कदापि मान-प्रतिष्ठा नहीं होती।
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वैसे तो एक शिष्ट समाज में जब हम लोग एक मरीज़ की बात किसी के साथ किसी दूसरे के साथ शेयर नहीं करते तो ऐसे में कैसे हम मुंह के कैंसर जैसे रोग से लाचार रोगियों की तस्वीरें इतने व्यापक स्तर पर दिखा सकते हैं।
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ये तो ज़ाहिर सी बात है की हमारे समाज में अगर बिन ब्याही वधूवों का कोई स्थान है तो ये सिर्फ हमारे समाज की वजह से है, एक शिष्ट समाज की पराकास्ठा एक कोठे से शुरू होती है ये कहने में मुझे कोई अतिशय्योक्ति नहीं लगती
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एक और जहा हिन्दू धर्म ब्रह्मचर्य की वकालत कर एक सभ्य और शिष्ट समाज की रचना करने का प्रयत्न करता है, और इसकी जिम्मेदारी पुरुषो पर डालता है, इस्लाम इसका प्रबंध महिलाओ को सर से पैर तक धक् कर करना चाहता है, जो संभव नहीं न ही ये तर्क सांगत है न ही न्यायपूर् ण.
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‘मानक भाषा ' किसी भाषा के उस रूप को कहते हैं जो उस भाषा के पूरे क्षेत्र में शुद्ध माना जाता है तथा जिसे उस प्रदेश का शिक्षित और शिष्ट समाज अपनी भाषा का आदर्श रूप मानता है और प्रायः सभी औपचारिक परिस्थितियों में, लेखन में, प्रशासन और शिक्षा, के माध्यम के रुप में यथासाध्य उसी का प्रयोग करने का प्रयत्न करता है।
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‘मानक भाषा ' किसी भाषा के उस रूप को कहते हैं जो उस भाषा के पूरे क्षेत्र में शुद्ध माना जाता है तथा जिसे उस प्रदेश का शिक्षित और शिष्ट समाज अपनी भाषा का आदर्श रूप मानता है और प्रायः सभी औपचारिक परिस्थितियों में, लेखन में, प्रशासन और शिक्षा, के माध्यम के रुप में यथासाध्य उसी का प्रयोग करने का प्रयत्न करता है।