हमने बड़े बूढों के मुंह यह सुना है कि जब नागरी बसाहटें उतनी वजूद में नहीं थीं और मानव सभ्यता गाँव गिरावों में आँखें मुलमुला रही थी तब कुछ ख़ास गोत्रों के श्रेष्ठ जन अगल बगल की ईख या अरहर की घनी फसलों में एक ख़ास किस्म की तत्कालीन जलेबी जिसे आज भी “ चोटहिया जलेबी ” के नाम से भारत के इस पूर्वांचल में जाना जाता है सरे शाम छोड़ आते थे..
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आप पढ़े लिखे हैं, विद्वान हैं, विभिन्न राजनीतिक दलों के घोषणा पत्रों का मनन करके, सभी प्रत्याशियों की कुंडली जांच कर वोट दे कर आते हैं, वहीं दूसरि ओर, आपके पड़ोस का कोई व्यक्ति देसी ठर्रे के एक पाउच के लालच में, या जात-बिरादरी के कहने पर एक गलत व्यक्ति को वोट दे आता है और इस प्रकार आपके वोट की महत्ता को समाप्त कर देता है-क्या ऐसी व्यवस्था के अंतर्गत आप श्रेष्ठ जन-प्रतिनिधियों की उम्मीद कर सकते हैं?