लेकिन 16वीं शताब्दी के बाद लिखे गए ' हैमलेट', 'लियर', 'आथेलो', 'मैकवेथ', 'ऐंटनी ऐंड क्लियोपेट्रा' और फ़ कोरियोलेनसफ़ में उस युग के षड्यंत्रपूर्ण दूषित वातावरण में मानवतावाद की पराजय का चित्र है।
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भ्रष्टाचार खासकर सत्ता के शीर्ष के भ्रष्टाचार पर ऊँगली न उठाने और उसे दबाए-छुपाये रखने के लिए बनी सत्ता और विपक्ष की सहमति और उसे लेकर सार्वजनिक जीवन में बरती जानेवाली षड्यंत्रपूर्ण चुप्पी टूट सी गई है.
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क्या राबर्ट वाड्रा मामले के सामने आने से वास्तव में, कारपोरेट मीडिया, कार्पोरेट्स और सत्ता शीर्ष की राजनीति में आपसी सहमति के आधार पर बनी षड्यंत्रपूर्ण चुप्पी टूट गई है? यह दावा करना जल्दबाजी है.
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विभिनन पर्यवेक्षकों द्वारा “षड्यंत्र सिद्धांत” शब्द को एक षड्यंत्रपूर्ण दावे का निष्पक्ष वर्णन करार किया गया है, जो एक अपमानजनक शब्द है, जिसका प्रयोग इस तरह के दावे को बिना परीक्षा के खारिज करने के लिए किया जाता है और इस तरह के दावे को बढ़ावा देने वालों द्वारा सकारात्मक समर्थन देने का संकेत करने के लिए भी इस शब्द का प्रयोग किया जाता है.
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इसलिए इस आशंका को नकारा नहीं जा सकता है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ अघोषित और षड्यंत्रपूर्ण चुप्पी के टूटने, शीर्ष पदों पर भ्रष्टाचार के अनेकों मामलों के भंडाफोड, घोटालों के हम्माम में सत्ता पक्ष और विपक्ष के नंगे पकड़े जाने और भ्रष्टाचार के खिलाफ देशव्यापी गुस्से और विरोध के बावजूद इस ‘ क्रांति ' का हश्र भी पहले से अलग नहीं होने जा रहा है.
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कारण? लगातार प्रशासन को भ्रष्टाचार, अनियमितताओं तथा सितंबर ११ घटने के बावजूद सुरक्षा तक में धांधली बाजी करते रहने वाले अधिकारीयों तथा ठेकेदारों की आपराधिक सांठ गाँठ सबूतों सहित सूचित करते रहने के तथा व्यक्तिगत प्रताड़ना सहते रहने के बावजूद धूर्त, रंगभेदी और ऊपर तक भ्रष्ट तथा अकर्मण्य प्रशासन का अँधा और बहरा ही बने रह जाना तथा मेरे ही ऊपर षड्यंत्रपूर्ण झूठे दोषारोपणों का लगातार दबाव.
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लेकिन ‘ इंडिया अगेंस्ट करप्शन ' के अरविन्द केजरीवाल और प्रशांत भूषण ने घोटालों के भंडाफोड़ की कड़ी में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी के दामाद राबर्ट वाड्रा की संपत्ति में सिर्फ कुछ ही वर्षों में हुई अभूतपूर्व वृद्धि और रीयल इस्टेट कंपनी-डी. एल. एफ के साथ उनके संबंधों / सौदों पर ऊँगली उठाकर न सिर्फ बर्र के छत्ते को छेड़ दिया है बल्कि इस षड्यंत्रपूर्ण चुप्पी को भी झटका दिया है.
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वैसे चैनलों के कोलाहल भरे ‘ जनतंत्र ' में सचिन की रिटायमेंट से लेकर एक स्वयंभू स्वामी के सपने के आधार पर उन्नाव के एक गांव में हजार टन सोने की खोज और नरेन्द्र मोदी की रैलियों से लेकर राहुल गाँधी के भाषणों पर उत्तेजना भरी बहसें बदस्तूर जारी हैं लेकिन ५ ८ दलितों के नरसंहार के मामले में किसी को भी सजा न मिलने और सभी आरोपियों के बरी होने पर एक षड्यंत्रपूर्ण चुप्पी को साफ़ सुना जा सकता है.