जो सपने दिन के प्रकाश में धूमिल हो जाते हैं या अदृश्य अपने सोदर, संकोचशील उडुऑ-से, वही रात आने पर कैसे हमें घेर लेते हैं ज्योतिर्मय, जाज्वल्यमान, आलोक-शिखाएँ बनकर! निशा योग-जागृति का क्षण है उदग्र प्रणय की ऐकायनिक समाधि; काल के इसी गरुत के नीचे भूमा के रस-पथिक समय का अतिक्रमण करते हैं योगी बँधे अपार योग में, प्रणयी आलिंगन में.
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जो सपने दिन के प्रकाश में धूमिल हो जाते हैं या अदृश्य अपने सोदर, संकोचशील उडुऑ-से, वही रात आने पर कैसे हमें घेर लेते हैं ज्योतिर्मय, जाज्वल्यमान, आलोक-शिखाएँ बनकर! निशा योग-जागृति का क्षण है उदग्र प्रणय की ऐकायनिक समाधि ; काल के इसी गरुत के नीचे भूमा के रस-पथिक समय का अतिक्रमण करते हैं योगी बँधे अपार योग में, प्रणयी आलिंगन में.