सोलो गाते हुए जहां उनकी आवाज सबसे ऊंचे सप्तक (तार सप्तक) तक बिना लड़खड़ाए जा सकती थी (ओ दूर के मुसाफिर, हमको भी साथ ले ले...), वहीं ड्यूएट में अपने साथ वाली आवाज की शांत संगत करना भी उसे आती थी (इशारों इशारों में दिल लेने वाले...) ।
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उस महिला ने बच्चे को अपने पास बुलाया और कहा-बेटा, मैं पूजा तो तुलसी की ही प्रतिदिन करती हूँ परन्तु पास के गमले पर रोली और अक्षत अनजाने में ही लग जाते हैं, तुम इससे एक बात सीख सकते हो? बच्चा बोला-मैं क्या बात सीख सकता हूँ? महिला बोली-अच्छे लोगो की संगत करना.