इस बात के ऐसा करने पर उसी दिन से पिंगलक और संजीवक का सब बांधवों को छोड़कर बड़े स्नेह से समय बीतने लगा।
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फिर बोला-तो संजीवक को क्या उपदेश करना चाहिये? दमनक ने घबरा कर कहा-महाराज, ऐसा नहीं, इससे गुप्त बात खुल जाती है।
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संजीवक डरा हुआ है.] संजीवक: बोलो संकट है तो नही सब कुछ है नासही-सही बोलो महाराज ने कहाहै क्या सब कुछ ठीक-ठीक रहा है क्यादमनक: महाराजने क्या कहा.
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दमनक के बहुविध समझाने पर पिंगलक ने संजीवक की मृत्यु का शोक करना छोड़ा और फिर दमनक को अपना मंत्री बनाकर पूर्वतत् अपना राज्य संचालन करने लगा |
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यह सोच कर नंदक और संजीवक नामक दो बैलों को जुए में जोतकर और छकड़े को नाना प्रकार की वस्तुओं से लादकर व्यापार के लिए कश्मीर की ओर गया।
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-“आपके मित्र संजीवक ने विदेशी बैंकों में जो काला धन जमा करवा रखा है, इस फाइल में उसी का हिसाब किताब है।” करटक ने अपने दर्द पर काबू पाते हुए कहा।
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शरीर तथा मन का कूड़ा-कर्कट बाहर फेंकने के बाद उदित हुआ मौन संजीवक और निरामय होता है, उसमें मन की दूरियाँ मिट जाती हैं और एक चेतना का अनुभव होता है।
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यह विचार कर संजीवक को वहाँ छोड़ कर फिर वर्धमान आप धर्मपुर नामक नगर में जा कर एक दूसरे बड़े शरीर वाले बैल को ला कर जुए में जोत कर चल दिया।
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और वह एक दिन प्यास से व्याकुल होकर पानी पीने के लिए यमुना के किनारे गया और वहाँ उस सिंह ने नवीन ॠतुकाल के मेघ की गर्जना के समान संजीवक का डकराना सुना।
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संजीवक बोला, ' जबकि मेरा स्वामी मुझसे रुष्ट हो तो ऐसी स्थिति में मुझे बाहर नहीं जाना चाहिए | मुझे तो अब युद्ध के अतिरिक्त कोई श्रेयस्कर मार्ग सूझ ही नहीं रहा है |