जब उस कठिन घड़ी में उस संदूक़ को पानी में डालने का आदेश जारी हुआ जिसमें नवजात था तो ईश्वरीय संबोधन में यह वचन दिया गया कि हम उसे तुम्हारे पास पलटाएंगे और उसे रसूल बनाएंगे।
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अक़ील ने कहाः अजीब बात कर रहे हो, मुझे प्रस्ताव दे रहे हो कि लोगों के संदूक़ से उन बेचारों की मेहनत की कमाई, जो उन्होने ईश्वर के भरोसे पर यहां रखी है उठा ले जाऊं।
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टूटना ही अंतिम सत्य है यह जीवन का फ़लसफ़ा रहा नहीं फिर भी टूटने के बाद हम दोनों ने ही प्रेम को क्यों बुहार फेंका? मेरे घर के पुराने एक संदूक़ में पुरानी एक बहुत माला था टूटी हुई धागे से अलग।
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सर झुकाए ग़मज़दा बच्चा इधर आया नज़र दौड़ कर बच्चे को घर में ख़ुद बुला लाती है मां हर तरफ़ ख़तरा ही ख़तरा हो तो अपने लाल को रख के इक संदूक़ में दरया को दे आती है मां दर नया दीवार में बनता है...
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बचपन के इस वाक़िये को मैं कभी नहीं भूल पाई...कहते हैं कि इंसान ज़िन्दगी में दो चीज़ें कभी नहीं भूलता...एक ख़ुशी देने वाली बात और दूसरी तकलीफ़ देने वाला हादसा...लेकिन यादों के संदूक़ में हम सिर्फ़ सुकून देने वाले लम्हों को ही सहेजकर रखते हैं...इसलिए तकलीफ़ देने वाली बातें कुछ वक़्त बात बेमानी हो जाती हैं...