स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती की हत्या में माओवादियों की संपृक्ति को लेकर चल रही बयानबाजी तुरन्त बंद करने के साथ दोषी लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने की मांग विश्व हिन्दू परिषद ने की है।
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मारवाड़ अंचल की ठेट भाषा का ठाट और वर्तमान के शिक्षित आधुनिक वैश् वीकृत मानव की परिष् कृत भाषा का प्रयोग इन कहानियों को अपने परिवेश से गहरी संपृक्ति दर्शाते भाषा वैभव से सजाता है।
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लोक के पिछड़ेपन का सवाल भी कविता के साथ अक्सर उठाया जाता है और इस वजह से लोक संपृक्ति वाले कवियों को कमतर कर के आंकने की एक एक प्रवृति भी देखने में आती है।
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एक और बात मेरी समझ में आती है कि लोक संपृक्ति वाली कविताओं के पास अपनी एक समृद्ध जमीन होती है, एक लंबी साकारात्मक परंपरा और व्यवहार होता है जो मनुष्यता का एक सहज गुण है।
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मिट्टी की सोंधी सुगंध से संपृक्ति रखते हुए मिथिलेश्वर न केवल पुस्तक की भूमिका के माध्यम से, बल्कि इस संग्रह की लगभग सभी कथाओं की जीवनी शक्ति व लोक रस के महत्व को रेखांकित करते हैं।
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' शेखर ' में संपृक्ति का स्वरूप कितना और कैसा है, पर इतना असंदिग्ध रूप में कहा जा सकता है कि कृति की प्रकल्पना मूलतः औपन्यासिक है और एक कल्पनात्मक जीवन चित्र ही उसमें प्रधान है ।
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संवेदन की संपूर्णता के वास्ते ही लेखक से उम्मीद की जाती है कि वह वस्तु से संपृक्ति के क्षणों में अपनी दूरी बनाए ताकि विषयगतता, सबजैक्टिविटी का सम्मोहन उस पर से उतरे और रचना एक निर्भ्रांत रूपाकार में संपूर्ण उभरे।
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कैंसर वार्ड, पहला घेरा, गुलाग, लाल चक्र जैसे उपन्यास ग्रंथ हों अथवा “मैत्र्योना का घर”, “हम कभी गलती नहीं करते” जैसी लंबी कहानियाँ-सोल्झेनित्सिन के लेखन में प्रत्येक कहा-अनकहा शब्द, ध्वनि, रिक्त स्थान, विभिन्न विराम-चिन्ह तक अत्यंत गहरे अर्थों से संपृक्ति हैं।
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मैनेजर पांडेय ने उन्हें नागार्जुन की परंपरा का कवि कहा तो इसके पीछे ‘ सिमरिया घाट ' से ‘ सामने घाट ' तक का उनका लोक संपृक्ति मन ही है, जो लोक चेतना को वैश्विक संदर्भ में प्रतिरोध के साथ रेखांकित करता है।
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[8] गुजरात की समकालीन हिन्दी कविता-युग संपृक्ति [9] में डॉ महावीर सिंह चौहान ने एक बहुत मार्मिक प्रश्न उठाया है कि क्या गुजरात की समकालीन हिन्दी काव्य परंपरा गुजरात की मध्यकालीन हिन्दी रचनाशीलता का ही सहज परिणाम है?