लगता है वेन भी इसी प्रवृत्ति के जाल में फंस गए है और मानने लगे है कि या तो उच्च संवृद्धि दर हासिल की जा सकती है या फिर स्वच्छ पर्यावरण।
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1991 के बाद के वर्षों में 6 से 9 फीसदी सालाना आर्थिक संवृद्धि दर होने के बावजूद नियमित रोजगार में वृद्धि की दर 1 फीसदी सालाना से आगे नहीं जा सकी है।
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रिसाव के जिस सिद्धांत के तहत माना गया था कि उच्च संवृद्धि दर से अपनेआप व्यापक ग़रीब आबादी का जीवन स्तर सुधरेगा, वह पिछले बीस सालों में कहीं लागू होता नहीं दिखता।
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रिसाव के जिस सिद्धांत के तहत माना गया था कि उच्च संवृद्धि दर से अपनेआप व्यापक ग़रीब आबादी का जीवन स्तर सुधरेगा, वह पिछले बीस सालों में कहीं लागू होता नहीं दिखता।
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अब पश्चिमी आलोचक भारत को लेकर भी सवाल उठाएंगे कि जब चीन अपनी संवृद्धि दर को कम करने के लिए कदम उठा सकता है तो भारत उच्च दर को लेकर इतना दीवाना क्यों है?
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इसके संवृद्धि दर का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि, आज अगर कोई माइक्रोसाफ्ट से इस्तीफा देता है तो अस्सी फ़ीसदी संभावना रहती है कि वह गूगल ही ज्वाईन करेगा।
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वनस् पति फसलों के संवर्धन हेतु वनस् पति अनुसंधान तथा नीति गत उपायों पर जोर से संवृद्धि दर अचानक बढ़कर 2. 5 % हो गई जो विगत दशक की तुलना में पांच गुणा की वृद्धि है।
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अब पश्चिमी आलोचक भारत को लेकर भी सवाल उठाएंगे कि जब चीन अपनी संवृद्धि दर को कम करने के लिए कदम उठा सकता है तो भारत उच्च दर को लेकर इतना दीवाना क्यों है?
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भारत में विकास के घटकों की गतिशीलता कायम रखने के लिए यह बेहद जरूरी हो जाता है कि न केवल सकल घरेलू उत्पाद की संवृद्धि दर ऊंची रहे, बल्कि समाज में सौहा र्द्र भी बना रहे।
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1994-200 के बीच 8 % की संवृद्धि दर के बावज़ूद उत्पादन वृद्धि के साथ रोज़गार बढने की प्रत्यास्थता केवल 0. 15 % पाई गयी ‘ … तब से अब तक परिदृश्य में कोई खास परिवर्तन नहीं आया है।