पीपल, हल्दी, शंख की भस्म, सज्जी क्षार, कौंच के बीज, सैंधा लवण, निर्गुण्डी के पत्ते, चनगोटी के बीज, केशर, आसवों का कचरा, मूली, नीलाथोथा, नागकेशर, मुर्गे की बींठ, धतूरे के बीज और अजवायन-इन सब वस्तुओं को समभाग लेकर कपड़छान कर लें और एक भावना गाय के दूध की देकर सुरक्षित रखें ।
32.
* अजवाइन, हाऊबेर, त्रिफला, सोंफ, कालाजीरा, पीपरामूल, बनतुलसी, कचूर, सोया, बच, जीरा, त्रिकुटा, चोक, चीता, जवाखार, सज्जी, पोहकरमूल, कूठ, पांचों नमक और बायबिण्डग को 10-10 ग्राम की बराबर मात्रा में, दन्ती 30 ग्राम, निशोथ और इन्द्रायण 20-20 ग्राम और सातला 40 ग्राम को मिलाकर अच्छी तरह बारीक पीसकर चूर्ण बनाकर बनाकर रख लें।
33.
रसशोधकों में देवला, भिन्डी, सेमल की छाल, फालसा की दाल या सुखालाई की छाल का क्रमशः 150, 200, 250, 255 व 200 ग्राम प्रति कुन्तल के हिसाब से प्रयोग व रासायनिक पदार्थों जैसे-सोडियम हाईड्रोसल्फाइड, सोडियम कार्बोनेटव सुपर फास्फेट, चने का पानी व सज्जी आदि क्रमशः 40-45 ग्राम, 10-15 ग्राम, 500 मि ० ली ० व 1.5 लीटर प्रति 4 कुन्तल रस के शोधन के लिये उपयुक्त होता है।