| 31. | इस प्रकार प्रभाकर के मत से सन्निकर्ष तीन प्रकार के हो जाते हैं।
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| 32. | धूमस्वरूप सन्निकर्ष से सकल धूम का अलौकिक प्रत्यक्ष रूप ज्ञान इसका उदाहरण होता है।
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| 33. | इस धर्म को ही विषय के साथ इंद्रिय का योगज सन्निकर्ष कहा जाता है।
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| 34. | इस धर्म को ही विषय के साथ इंद्रिय का योगज सन्निकर्ष कहा जाता है।
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| 35. | ज्ञान ही लक्षण अर्थात स्वरूप है जिसका वह ज्ञानलक्षणा प्रत्यासत्ति (सन्निकर्ष) कहलाता है।
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| 36. | इस सन्निकर्ष से ज्ञान के विषय का ही प्रत्यक्ष होता है, उसके आश्रय का नहीं।
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| 37. | इस सन्निकर्ष से ज्ञान के विषय का ही प्रत्यक्ष होता है, उसके आश्रय का नहीं।
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| 38. | वे सन्निकर्ष छ: हैं-संयोग, संयुक्त समवाय, संयुक्तसमवेत समवाय, समवाय, समवेत समवाय और विशेषणता।
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| 39. | वे सन्निकर्ष छ: हैं-संयोग, संयुक्त समवाय, संयुक्तसमवेत समवाय, समवाय, समवेत समवाय और विशेषणता।
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| 40. | इन्द्रिय और अर्थ के सन्निकर्ष से जन्य तथा अव्यभिचारी अर्थात यथार्थ ज्ञान प्रत्यक्ष कहलाता है।
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