जैसा कि वैधव्य का जीवन जीने वाली हर भारतीय नारी के साथ होता है, माई फिर वहां से निकलकर लाहौर पहुंच गई, वहां एक मन्दिर में कुछ दिन रहकर एक विदुषी, सुसंकृत सन्यासिनी से माई ने दीक्षा ली और तब वे दीपा से इच्छागिरि माई बन गई और वीतराग एवं निस्पृह जीवन जीने लगी, किंतु १ ९ ४ ७ के सांम्प्रदायिक दंगों के कारण पंजाब का वातावरण विषाक्त हो चुका था।
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मेरे ब्लॉग पर एक कहानी है ' काकीसा ' पढ़ कर दिखाइये इन सन्यासियों को, पूछिए उनसे कि किसी सन्यासिनी से कम थी या है ' काकीसा? ये हमारी संस्कृति है जहाँ औरतों ने पति के बाद अपना जीवन होम कर दिया उसके नाम पर, वे किसी सन्यासिनी से कम थी या उनका जीवन किसी योगी से कम था? कब घर, परिवार, जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ा उन्होंने? बिना भगवा धरे इनके जीवन और इनको मैं हजारों बार प्रणाम करती हूँ.
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मेरे ब्लॉग पर एक कहानी है ' काकीसा ' पढ़ कर दिखाइये इन सन्यासियों को, पूछिए उनसे कि किसी सन्यासिनी से कम थी या है ' काकीसा? ये हमारी संस्कृति है जहाँ औरतों ने पति के बाद अपना जीवन होम कर दिया उसके नाम पर, वे किसी सन्यासिनी से कम थी या उनका जीवन किसी योगी से कम था? कब घर, परिवार, जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ा उन्होंने? बिना भगवा धरे इनके जीवन और इनको मैं हजारों बार प्रणाम करती हूँ.