अपने राजमहल में विराजमान राजा को भी वह शोभा प्राप्त नहीं हो सकती, जो शोभा स्वच्छ और शम से शोभायमान समबुद्धि से युक्त पुरुष को प्राप्त होती है।
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इसलिए हे धनंजय! तू समबुद्धि में ही रक्षा का उपाय ढूँढ अर्थात् बुद्धियोग का ही आश्रय ग्रहण कर क्योंकि फल के हेतु बनने वाले अत्यन्त दीन हैं॥ 49 ॥
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भावार्थ: क्योंकि समबुद्धि से युक्त ज्ञानीजन कर्मों से उत्पन्न होने वाले फल को त्यागकर जन्मरूप बंधन से मुक्त हो निर्विकार परम पद को प्राप्त हो जाते हैं॥ 51 ॥
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जो सर्वत्र समदृष्टि है, व्यवहार में अपना पराया होते हुए भी जो सर्वत्र समबुद्धि रहता है, जिसका समष्टिरूप समस्त संसार में आत्मभाव है वही सच्चा साम्यवादी है | गीता में कहा गया है “
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श्रीमानों के घर में जन्म लेने वाला योगभ्रष्ट पराधीन हुआ भी उस पहले के अभ्यास से ही निःसंदेह भगवान की ओर आकर्षित किया जाता है तथा समबुद्धि रूप योग का जिज्ञासु भी वेद में कहे हुए सकाम कर्मों के फल को उल्ल
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श्रीमानों के घर में जन्म लेने वाला योगभ्रष्ट पराधीन हुआ भी उस पहले के अभ्यास से ही निःसंदेह भगवान की ओर आकर्षित किया जाता है तथा समबुद्धि रूप योग का जिज्ञासु भी वेद में कहे हुए सकाम कर्मों के फल को उल्लंघन कर जाता है॥44॥
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संयत मन की महिमा का योग इस छठे अध्याय में कहीं भी श्रीकृष्ण ने युद्ध की चर्चा नहीं की है, पर युद्ध तो वही कर सकता है, जो एकाग्रचित्त हो, संयत मन वाला हो, बलशाली हो तथा समबुद्धि से सब कुछ देखता हो।
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) श्रीमानों के घर में जन्म लेने वाला योगभ्रष्ट पराधीन हुआ भी उस पहले के अभ्यास से ही निःसंदेह भगवान की ओर आकर्षित किया जाता है तथा समबुद्धि रूप योग का जिज्ञासु भी वेद में कहे हुए सकाम कर्मों के फल को उल्लंघन कर जाता है॥ 44 ॥
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) श्रीमानों के घर में जन्म लेने वाला योगभ्रष्ट पराधीन हुआ भी उस पहले के अभ्यास से ही निःसंदेह भगवान की ओर आकर्षित किया जाता है तथा समबुद्धि रूप योग का जिज्ञासु भी वेद में कहे हुए सकाम कर्मों के फल को उल्लंघन कर जाता है॥ 44 ॥ प्रयत्नाद्यतमानस्तु योगी संशुद्धकिल्बिषः ।
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अर्थात सर्प में या मोती आदि की माला में, फूलों की शय्या में या पत्थर की शिला में, मणि में या मिट्टी के ढेले में, शक्तिशाली शत्रु में या मित्र में, तृण में या स्त्रियों के समूह में समबुद्धि रखते हुए मेरे दिन किसी पवित्र तपोवन में शिव, शिव, शिव रटते हुए व्यतीत हों।