प्रज्ञा के बल से ही पहली प्रवृत्ति तत्त्वों के विवेचन में कृतकार्य होती है और दूसरी प्रवृत्ति तर्क के सहारे तत्त्वों के समीक्षण में समर्थ होती है।
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प्रज्ञा के बल से ही पहली प्रवृत्ति तत्त्वों के विवेचन में कृतकार्य होती है और दूसरी प्रवृत्ति तर्क के सहारे तत्त्वों के समीक्षण में समर्थ होती है।
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प्रज्ञा के बल से ही पहली प्रवृत्ति तत्त्वों के विवेचन में कृतकार्य होती है और दूसरी प्रवृत्ति तर्क के सहारे तत्त्वों के समीक्षण में समर्थ होती है।
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समीक्षण ध्यान योगीः-विश्व में आज मनुष्यों में शरीर को स्वस्थ रखने की तीव्र अभिलाषा का परिणाम है कि ध्यान साधना की विविध पद्धतियाँ दृष्टिगोचर हो रही है।
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5. समीक्षण और परीक्षण-इस ग्रंथ में केशव के प्रति समालोचकों का एकांगी दृष्टिकोण, बेकन और पं0 रामचन्द्र शुक्ल, मैथिली शरण गुप्त का काव्य शिल्प, कुरुक्षेत्र, उर्वशी आदि 9 समीक्षक निबंध संग्रहित हैं।
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जिनमें कर्मप्रकृति, गुणस्थान सिद्धान्त, क्रोध समीक्षण, मान समीक्षण, माया समीक्षण, लोभ समीक्षण, आत्मसमीक्षण, गहरी पर्त के हस्ताक्षर, कुंकुम के पगलिए, नल-दमयंती, जवाहराचार्य यशोविजयम् महाकाव्य आदि महत्त्वपूर्ण कृतियाँ है।
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जिनमें कर्मप्रकृति, गुणस्थान सिद्धान्त, क्रोध समीक्षण, मान समीक्षण, माया समीक्षण, लोभ समीक्षण, आत्मसमीक्षण, गहरी पर्त के हस्ताक्षर, कुंकुम के पगलिए, नल-दमयंती, जवाहराचार्य यशोविजयम् महाकाव्य आदि महत्त्वपूर्ण कृतियाँ है।
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जिनमें कर्मप्रकृति, गुणस्थान सिद्धान्त, क्रोध समीक्षण, मान समीक्षण, माया समीक्षण, लोभ समीक्षण, आत्मसमीक्षण, गहरी पर्त के हस्ताक्षर, कुंकुम के पगलिए, नल-दमयंती, जवाहराचार्य यशोविजयम् महाकाव्य आदि महत्त्वपूर्ण कृतियाँ है।
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जिनमें कर्मप्रकृति, गुणस्थान सिद्धान्त, क्रोध समीक्षण, मान समीक्षण, माया समीक्षण, लोभ समीक्षण, आत्मसमीक्षण, गहरी पर्त के हस्ताक्षर, कुंकुम के पगलिए, नल-दमयंती, जवाहराचार्य यशोविजयम् महाकाव्य आदि महत्त्वपूर्ण कृतियाँ है।
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यह अहसास कि दूसरे का रास्ता दूसरे के लिए उपयोगी हो तो जरूरी नहीं कि हमारे लिए भी उपयोगी हो और यदि हमारे लिए उपयोगी है भी तो उसके निरीक्षण, परीक्षण और समीक्षण की बुध्दि स्वाभिमान और आत्मविश्वास से ही आती है।