सर्प विष से मरने वालों में अधिकतर समाज के निर्बल तबकों से साबका रखते हैं, जिनके परिवारों को ढंग से मुआवजा देने की कोई व्यवस्था नहीं है।
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कहते हैं कि चाणक्य के समय में सर्प विष के खतरे को निष्प्रभावित करने के उद्देश्य से जगह-जगह पर पीपल के पत्ते रखे जाते थे।
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कहा जाता है कि चाणक्य के समय में सर्प विष के खतरे को निष्प्रभावित करने के उद्देश्य से जगह-जगह पर पीपल के पत्ते रखे जाते थे।
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कहा जाता है कि चाणक्य के समय में सर्प विष के खतरे को निष्प्रभावित करने के उद्देश्य से जगह-जगह पर पीपल के पत्ते रखे जाते थे।
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सर्प विष से मरने वालों में अधिकतर समाज के निर्बल तबकों से साबका रखते हैं, जिनके परिवारों को ढंग से मुआवजा देने की कोई व्यवस्था नहीं है।
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लोक धारणा है कि सर्प दंश से प्रभावित व्यक्ति को यदि गोगाजी की मेडी तक लाया जाये तो वह व्यक्ति सर्प विष से मुक्त हो जाता है.
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-हींग को नारियल दूध में मिलाकर सांप काटे स्थान पर लगायें।-सेंधा नमक, असगंध पांच-पांच ग्राम चूर्ण थोड़े गर्म घी में मिलाकर पीने से सर्प विष का असर कम होता है।
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चैनैई में एक सर्प-पार्क है. यहाँ सर्प विष निकालने का विशेष समय पर प्रदर्शन भी होता है.सर्प को उसके आवास के अनुकूल वातावरण नमी-आद्रता-ताप आदि मुहैया करवाया जाता है ।
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-सर्प विष-सर्प विष में इसकी जड का रस या क्वाथ काटे हुए स्थान पर लगाया जाता है व आंखों में डाला जाता है व आध्े-आध्े घंटे की अवध् में पिलाया जाता है।
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-सर्प विष-सर्प विष में इसकी जड का रस या क्वाथ काटे हुए स्थान पर लगाया जाता है व आंखों में डाला जाता है व आध्े-आध्े घंटे की अवध् में पिलाया जाता है।