मुर्गा लडाई के इस बिम्ब के बहुत गहरे और बहुत सारे मायने हैं लेकिन बस्तर के सम्बन्ध में और वहाँ जारी सशस्त्र युद्ध को केन्द्र में रख कर ये पंक्तियाँ देखिये आपको ठहर कर सोचना ही होगा:-
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बाद में अंग्रेजी शासन ने सभी 23 क्रांतिकारियों पर काकोरी कांड के नाम पर सशस्त्र युद्ध छेड़ने तथा खजाना लूटने का मुकदमा चलाया जिसमें राजेन्द्रनाथ, रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खाँ तथा रोशन सिंह को फाँसी की सजा सुनाई गई।
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इसका अर्थ सशस्त्र युद्ध और लड़ाई है ; इसका अर्थ आर्थिक तथा राजनीतिक दबाव के जरिए संघर्ष करना भी है जिसका संचालन प्रचार के माध्यम से, गैर-मुसलमानों का इस्लाम में मतान्तरण करके और गैर-मुसलमान समाजों में घुस करके किया जाता है।
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सरकार द्वारा हम पर थोपी गई सशस्त्र युद्ध एवं गैर-सरकारी एवं निजी सुरक्षा बलों द्वारा प्रतिहिंसा से ऐसी परिस्थिति पैदा हो रही है जिससे इस विकास प्रक्रिया में हाशिये में खड़े लाखो लोगों का जीवन व आजीविका को खतरा उत्पन्न हो रहा है।
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एआईडीएमके और डीएमके समेत अन्य पार्टियां मांग कर रही हैं कि लिट्टे के खिलाफ सशस्त्र युद्ध के अंतिम चरण के दौरान श्रीलंकाई सेना द्वारा असैनिक तमिलों के खिलाफ किए युद्ध अपराधों की ध्यान में रखते हुए आयोजन स्थल को श्रीलंका से हटाया जाना चाहिए।
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बाद में ब्रिटिश राज ने दल के सभी प्रमुख क्रान्तिकारियों पर काकोरी काण्ड के नाम से मुकदमा दायर करते हुए सभी पर सम्राट के विरुद्ध सशस्त्र युद्ध छेड़ने तथा खजाना लूटने का न केवल आरोप लगाया बल्कि झूठी गवाहियाँ व मनगढ़न्त प्रमाण पेश कर उसे सही साबित भी कर दिखाया।
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वाशिंगटन अमेरिका के एक शीर्ष विशेषज्ञ ने खुलासा किया है कि 2008 में मुंबई पर लश्कर ए तय्यबा द्वारा किए गए हमले का मकसद नाटकीय रूप से दक्षिण एशिया के भविष्य को बदलना था और संभवत: यह भारत और पाकिस्तान के बीच परमाणु अथवा सशस्त्र युद्ध को भी भड़का सकता था।
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बाद में अंग्रेजी हुकूमत ने उनकी पार्टी हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन के कुल ४० क्रान्तिकारियों पर सम्राट के विरुद्ध सशस्त्र युद्ध छेड़ने, सरकारी खजाना लूटने व मुसाफिरों की हत्या करने का मुकदमा चलाया जिसमें राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी, पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खाँ तथा ठाकुर रोशन सिंह को मृत्यु-दण्ड (फाँसी की सजा) सुनायी गयी।
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ऐसे लोगों में मुसलमान मौलवियों और विद्वानों का एक दल भी था, जिसने सन् 1803 में ही, जब अंग्रेजों ने दिल्ली पर अधिकार स्थापित किया, अंग्रेजों के विरूद्ध खुलेआम आवाज बुलन्द की थी और मुसलिम जन साधारण को अंग्रेजों के विरूद्ध सशस्त्र युद्ध करने के लिए संगठित करने का प्रयास किया था।
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कुरान, हदीसों, इस्लामी कानूनों एवं इस्लाम के विद्वानों के ऊपर कहे गए कथनों से पाठकों को सुस्पष्ट हो गया होगा कि जिहाद का मुखय अर्थ गैर-मुसलमानों को इस्लाम में धर्मान्तरित करना और उनके सभी देशों को अल्लाह के कानून-शरियत के अधीन लाना है चाहे इसके लिये सशस्त्र युद्ध ही क्यों न करना पड़।