नरेंद्र मोहन और नव भारत टाइम्स के सम्पादक रहे डॉ. विद्या निवास मिश्र, महान राजनीतिज्ञ और ९ वर्षों तक यू के में भारतीय राजदूत रहे डॉ. लक्ष्मी मल सिंघवी) का सानिध्य और सहयोग भावना देखते नहीं बनती थी.
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परमानेन्ट सम्मान-जहां रिश्ते स्थायी हों, स्वार्थ न हो, आपस में सहयोग भावना हो, एक दूसरे के सुख-दु: ख में शामिल होने-काम आने की भावना हो, यहां जो हृदय से उत्पन्न भाव होंगे वे स्थायी सम्मान के भाव होंगे।
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नवीन प्रयोगशाला की स्थापना के समय डॉ. कोठारी को महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंसटीन ने शुभकामना प्रेषित करते हुए सलाह दी-‘‘ उत्कृष्ट सहयोग भावना रखोगे तथा विचारों में पूर्वाग्रह लाए बिना प्रेम के साथ कार्य करोगे तो तुम सदैव प्रसन्न रहोगे और अपने कार्य में सफल रहोगे।
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दूसरों की सुख-सुविधा, मुनाफा और अय्याशी के लिए जिस देश के करोड़ों बच्चे जानवरों से भी ज्यादा बदतर जिंदगी जीने को मजबूर हों, उस देश में यह उम्मीद करना कि यहां हर एक बच्चे को कभी-न-कभी रंगमंच से जुड़ने का मौका मिलेगा ताकि वह भाषा, साहित्य, सामाजिकता, सहयोग भावना, आत्मविश्वास और अनुशासन सीख सके और आगे चलकर एक बेहतर नागरिक बन सके-एक तरह की विलासिता ही लगती है।