इस व्यवस्था पर कायम रहने का लक्ष्य पार्टी के भीतर केंद्रीकरण के साथ-साथ लोकतंत्र होने, अनुशासन के साथ-साथ स्वतंत्रता होने, सामूहिक इच्छा के साथ-साथ व्यक्तिगत खुशी होने का राजनीतिक माहौल तैयार करना है।
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लेख में मार्क्सवाद की असफलता के कारणों के मूल में जाते हुए ग्राम्शी ने लिखा था कि, ‘ इस प्रकार की सामूहिक इच्छा का निर्माण सामान्यतः एक दीर्घकालिक और क्रमिक विकास का सुफल होता है.
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प्रश्न उठता है कि क्या कांग्रेस सदैव देश की सामूहिक इच्छा के विपरीत काम करेगी? इससे तो यही प्रतीत होता है गाधी वाद दो अक् टूवर तक श्रद्धा के फूलो तथा नोटो पर फोटो तक ही सीमित रह गया है।
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इसीलिए ऐसी बहुत-सी रचनाएँ सामने आ रही हैं, जिनमें कुछ अलग ढंग से कोई नयी बात कहने की कोशिश दिखायी पड़ती है और एक सामूहिक इच्छा का पता चलता है कि साहित्य आज जहाँ है, वहाँ से आगे बढ़ना चाहिए।
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यानी आर्थिक नीति ऐसी हो, जिसमेें ऐसी परियोजनाआंे के लिए कोई स्थान न रहे, जिसमें प्राकृतिक संसाधानांे के नष्ट होने की संभावना हो, जिसमें विकास की नीतियां और योजनाएं स्थानीय जनता की सामूहिक इच्छा और वहां उपस्थित संसाधानों के अनुसार न बनें।
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स्त्राी को विवश होता देखने की सामूहिक इच्छा का संस्कार उसे आग में झोंकने का दृश्य रचे या उसके कपड़े हटाने का क्कजैसा कि द्रौपदी के साथ हुआत्र्, अंततः वह नारी को स्थायी और अनिवार्य रूप से निर्बल सिद्ध करने के प्राचीन अभियान का हिस्सा है।
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स्त्री को विवश होता देखने की सामूहिक इच्छा का संस्कार उसे आग में झोंकने का दृश्य रचे या उसके कपड़े हटाने का (जैसा कि द्रौपदी के साथ हुआ), अंततः वह नारी को स्थायी और अनिवार्य रूप से निर्बल सिद्ध करने के प्राचीन अभियान का हिस्सा है।
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परुली के बाबू से फुरसत में बात करने पर जोस्ज्यु को भी यही ठीक लगा कि यह रिश्ता टूट जाए. अब इसे पूरे परिवार कि प्रबल सामूहिक इच्छा का प्रभाव समझिए या संजोग कि घटनाक्रम भी कुछ अनुकूल रहे.खान्तोली के गणेश दत्त जी, जो ‘ब्याकर' (शादियाँ तै कराने वाला)
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स्त्री को विवश होता देखने की सामूहिक इच्छा का संस्कार उसे आग में झोंकने का दृश्य रचे या उसके कपड़े हटाने का (जैसा कि द्रौपदी के साथ हुआ), अंततः वह नारी को स्थायी और अनिवार्य रूप से निर्बल सिद्ध करने के प्राचीन अभियान का हिस्सा है।
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आमजन को समर्पित ‘ जागो भारत जागो ' पुस्तक में मैने काफी विस्तार से भ्रष्टाचार के कारकों का उल्लेख करते हुये खासकर युवा वर्ग का आव्हान करते हुये कहा भी है कि जनांदोलनों की आग में ही पककर लोकतंत्र और समाज में निखार आता हैें, जनांदोलन समाज की सामूहिक इच्छा, आकांक्षा, सोच और परिवर्तन की अभिव्यक्ति होते हैं जब भी कोई समाज और देश राजनीतिक-आर्थिक-सामाजिक रूप से ठहराव और गतिरोध का शिकार हो जाता है तो जनांदोलन ही उसे तोड़ते और नई दिशा देते हैं।