मौसम ने धूप दी उतार पहन लिये बूँदों के गहने खेतों में झोंपड़ी बना कहीं कहीं घास लगी रहने बिन पिये तृषित पपीहा कह उठा पिया पिया पिया ले आया पावस के पत्र मेघ डाकिया......... ।। झींगुर के सामूहिक स्वर रातों के होंठ लगे छूने दादुर के बच्चों के शोर तोड़ रहे सन्नाटे सूने करुणा प्लावित हुई धरा अम्बर ने क्या नहीं दिया ले आया पावस के पत्र मेघ डाकिया......... ।।
32.
वह साथ थीं वरना इन जालीदार बंद लारियों में जानवरों की तरह भरकर जेल वापस लौटते कैदियों में से एक भी मेरी तरफ़ ध्यान नहीं देता देखता भी नहीं मेरी तरफ़ नज़र उठाकर वह साथ थीं तभी तो उनके झुंड में से मेरे लिए एक सामूहिक स्वर उठा क्यों वे लड़की बाज उसने दबाते हुए अपनी हँसी मुंह फेर लिया मेरी तरफ़ और मैं अपने सामने अचानक रुक गई उस लारी में भरे कैदियों के अपनी खिल्ली उडाते चेहरे देखता रहा