पानी का निजीकरण और सरकारी रवैया संदीप पांडे जल जैसे प्राकृतिक संसाधन, जो पूरे समाज के उपयोग के लिए उपलब्ध हैं तथा जिन पर समाज का सामूहिक स्वामित्व है, के प्रति सरकारों के नजरिए में परिवर्तन आ गया है।
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दरअसल सामूहिक स्वामित्व का बोध इसे पूर्णतया पेशेवर बनने की राह में अड़ंगा डाल देता है किंतु जब कोई नौकरशाह या मंत्री इस उपक्रम को अपने कंधों पर उठाने का साहस जुटा लेता है तब यह सफलता के झंडे गाड़ देता है.
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नकवी के अनुसार एशियाई और गैर एशियाई समाजों में ' ' जमीन के सामूहिक स्वामित्व की मार्क्स द्वारा गढ़ी हुई कहानी ब्रिटिश संसद की एक चयनित कमेटी की रिपोर्ट से ली गई थी, जिसे पाँचवीं कमेटी के नाम से जाना जाता है ''
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शाशक वर्ग यदि अपने पूर्व वर्ती शाशकों की “ लाभ-शुभ “ केन्द्रित राज्य संचलन व्यवस्था को पलटता नहीं और उसके नीति निर्देशक सिद्धांतों में सम्पत्ति के निजी अधिकार से ऊपर जनता के सामूहिक स्वामित्व को प्रमुखता नहीं देता तब तलक वर्गीय समाज रहेगा.
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भूमिका में लिखा है, ” यदि रूसी क्रान्ति पश्चिम में सर्वहारा क्रान्ति की प्रेरक बनती है, ताकि दोनों एक दूसरे की मददगार बन सकें, तब वर्तमान में रूस में भूमि का सामूहिक स्वामित्व कम्युनिस्ट विकास के लिए प्रस्थान बिंदु बन सकता है ”
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इस पृथ्वी पर उपलब्ध तमाम संसाधन-जीवन के उपादान-प्राकृतिक नेमतें-पानी-हवा-धरती और प्राकृतिक समस्त नैसर्गिक संसाधनों पर न केवल बुद्धिबल सज्जित मानव का-अपितु चर-अचर समस्त जीवधारियों का ' सबका सब पर सामूहिक स्वामित्व है ' इस दर्शन ने ही सबसे पहले दुनिया के तमाम मानवता वादियों को ये य्ह्साश कराया था की दुनिया में दो वर्ग हैं.
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चीन उदात्त बिजली रेल वाहनों में एक विनिर्माण आधार, उत्तरी चीन में एक शीआन शहर, शानक्सी प्रांत और आर्थिक स्थायी सामूहिक स्वामित्व वाले वाहनों में संयुक्त अगस्त 2003 HYEE में अगस्त 2004 में उद्यम की स्थापना के रूप में Hitachi पृष्ठभूमि उदात्त से बिजली रेलवे वाहन (मुख्य इकाई रूपांतरण, एक मुख्य नियंत्रण इकाई, सहायक बिजली की आपूर्ति, वेंटिलेशन और एयर कंडीशनिंग उपकरण) का उत्पादन किया है.
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उदाहरण के लिए 1880 के दशक में मार्क्स और एंगेल्स जब रूस में क्रान्ति की संभावना पर विचार करते हैं तो उनके सामने यह प्रश्न था कि वहां के किसानों में जो सामूहिक स्वामित्व की ' पेजेंट कम्यून ' जैसी व्यवस्था थी, वह रूस में पूंजीवाद द्वारा नष्ट कर दी जाएगी या कि वह व्यवस्था एक उच्चतर स्तर पर समाजवादी रूपांतरण की प्रक्रिया के लिए मार्ग प्रशस्त करेगी, उसे तेज़ कर देगी.
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माक्र्स ने अपने प्रसिद्ध ग्रंथ पूंजी में भारत की ग्राम्य व्यवस्था के बारे में लिखाःहिन्दुस्तान के वे छोटे-छोटे तथा अत्यन्त प्राचीन ग्राम समुदाय अर्थात समाज, जिनमें से कुछ आज तक कायम हैं, जमीन पर सामूहिक स्वामित्व, खेती तथा दस्तकारी के मिलाप और एक एैसे श्रम विभाजन पर आधारित हैं जो कभी नहीं बदलता, और जो जब कभी एक नया ग्राम्य समुदाय आरम्भ किया जाता है तो पहले से बनी बनाई और तैयार योजना के रूप में काम आता है।