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साररूप उदाहरण वाक्य

उदाहरण वाक्य
31.कृष्ण यजुर्वेदीय शाखा के इस उपनिषद का रूप काफी छोटा है परंतु कम शब्दों का उपयोग करके अर्थ की महत्वता को कम नहीं होने दिया गया इस लघु उपनिषद में वेदों का उपदेश साररूप में वर्णित किया गया है.

32.भूमिहीनों व गरीब किसानों के हितों के प्रति चिंतित सभी ताकतांे को ऐसे किसान विरोधी कृषि नीति के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद करनी चाहिये, जो कि साररूप में किसानों के साथ ही खाद्यान्न आत्मनिर्भरता को भी बर्बाद करती है।

33.महाभारत (ईसा के ३ ००० वर्ष पूर्व) के बहुत समय बाद राजा भोज के समय में ‘ चम्पू रामायण ' लिखा गया ; इसमें साररूप में राम कथा का वर्णन है, किन्तु उसमें भी उत्तर कांड नहीं है।

34.इस पुराण में सदाचार का वर्णन करते हुए साररूप में कहा गया है कि संयमी, धार्मिक, दयावान, तपस्वी, सत्यवादी तथा सभी प्राणियों के लिए हृदय में प्रेम का भाव रखने वाले मनुष्य ही भगवान शिव को प्रिय हैं।

35.चूँकि ज़्यातर हिंदी के बड़े अखबार सेठ-साहूकारों की कंपनियों के शगल हैं, या फिर अंगरेज़ी प्रकाशन समूहों के उप-उत्पाद हैं इसलिए हिंदी जगत की ओर, जो साररूप में भारतीय सांस्कृतिक जगत है, इनका प्रबंधन ध्यान नहीं देता, उन्हें उपेक्षित रखता है।

36.उक्त पुस्तक में तो यह प्रसंग अत्यंत विस्तृत रूप में उल्लिखित है, मैंने उसके साररूप को अपने शब्दों में ढाल यहाँ प्रेषित करने का प्रयास किया है.चूँकि यह प्रसंग मेरे लिए सर्वथा नवीन एवं रोमांचक था,सो मैंने सार्वजानिक स्थल पर इसे सर्वसुलभ करने का निर्णय लिया.)

37.बम्बई उच्च न्यायालय ने जोगानी एण्ड सचदेव डेवलेपमेन्ट्स बनाम लारेंस डिसूजा (2006 (2) एम एच एल जे 369) में कहा है कि राहत के लिए प्रार्थना का प्रारूप या प्रयुक्त षब्दावली असंगत तथ्य है जो कुछ देखने योग्य है वह साररूप में राहत है जो स्वीकृत करने की याचना की गई है।

38.ऐसे संकट से बचने के लिये शास्त्रों में जो उपाय बतलाये गये हैं, उनका साररूप निम्नलिखित दस बातें हैं सत्य का पालन, दुःखी प्राणियों पर दया, तन, मन, धन से सात्विक दान, देवताआें की यथाविधि पूजा, सदाचरण, ब्रह्मचर्यपालन, शास्त्र और जितात्मा महर्षियों की आज्ञा का पालन, धर्मात्मा और सात्विक पुरुषों का सङ्ग, गोसेवा, गायों के लिये गोचरभूमि की व्यवस्था करना और भगवान् के नामरूपी मंत्रों के द्वारा आत्मरक्षा।

39.अतः साररूप में यह कहा जा सकता है कि कोई भी व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति को परिवर्तित नहीं कर सकता! कोई भी व्यक्ति जब तक ज्ञान का पात्र नहीं हो जाता तब तक उसमे परिवर्तन हो भी नहीं सकता! इसलिए एक व्यक्ति की चेतना तभी जागृत होगी जब उसका प्रत्येक कर्म विवेकशील होकर शुद्ध होता चला जाएगा! यह एक सत्य है कि तप के बिना सत्य को नहीं जाना जा सकता और सत्य जाने बिना ज्ञान नहीं हो सकता यानि सत्य और ज्ञान एक तरह पर्यायवाची ही हैं!

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