जब भी कृष्णा घर से कोई स्पेशल आईटम बनाकर लंच के लिए टिफिन में लाती, तो मुकेश को लंच पर इशारा करके स्कूल के पीछे की सीढीनुमा क्यारियों में बुला लेती, और फिर दोनों वहीँ बैठकर लंच करते ।
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' रस्तेवाली ' कहानी शोषण की इस सीढीनुमा व्यवस्था के त्रासद सच को उद्घाटित करती कहानी महानगरों के प्रवासी मजदूरों के एकाकी जीवन में कुछ समय के लिए राहत प्रदान करती ' स्ट्रीट प्रास्टीच्यूटस ' के जीवन संघर्ष को उघाड़ती है।
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रास्ता बलतिर को जाता है, रास्ते के 30 मीटर के आस पास लाश पडी थी तथा सामान्यतः पहाडो में सीढीनुमा खेत होते है तथा सीडीनुमा खेतों में कोई भी वस्तु 30 मीटर की दूरी से दिखायी देनी हमेशा सम्भव नहीं होगी क्योकि रास्ते चलते व्यक्ति की निगाह सीधे सडक पर रहती है और जब वह पगडण्डी हो तो राहगीर को हमेशा सडक को भी देखना होगा।