पालकी फिल्म का यह गीत बहुत दिन बाद सुना-दिले बेताब को सीने से लगाना होगा आज परदा हैं तो कल सामने आना होगाइस क़व्वाली की फरमाइश भी श्रोताओं ने बहुत दिन बाद की-यह मस्जिद हैं वो बुतखाना चाहे ये मानो चाहे वो मानोधूम, विवाह, वीरजारा, हम तुम फिल्मो के गीत भी सुनवाए, इन फिल्मो का इस सप्ताह दुबारा-तिबारा शामिल होना अच्छा नही लगा।
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कानपुर! आह! आज तेरी याद आई फिर स्याह कुछ और मेरी रात हुई जाती है आंख पहले भी यह रोई थी बहुत तेरे लिये अब तो लगता है कि बरसात हुई जाती है **** और ऋषियों के नाम वाला वह नामी कालिज प्यार देकर भी न्याय जो न दे सका मुझको मेरी बगिया की हवा जो तू उधर से गुजरे कुछ भी कहना न, बस सीने से लगाना उसको **** बात यह किन्तु सिर्फ जानती है '
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किसी को उम्र भर सर पर बिठाना बड़ी मुश्किल है यूँ रिश्ता निभाना हज़ारों ठोकरें मारीं हो जिसने उसी पत्थर को सीने से लगाना मेरे गीतों में खुद को पाओगे तुम कभी तन्हाई में सुनना सुनाना बड़ी मासूम सी उनकी अदा है उठा कर के गिराना फिर उठाना जुनूने इश्क में होता है अक्सर लगी हो चोट फिर भी मुस्कुराना जला कर ख़ाक कर सकते हैं घर को चरागों से है रोशन यूँ ज़माना कहाँ आसान होता है किसी को किसी भी गैर का हंसना हँसाना नहीं आती है सबको रास शोहरत बुलंदी पर नही रहता ठिकाना पर