| 31. | राजा प्रजा जेहि रुचे, सीस देहि ले जाय।
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| 32. | सीस नमावत ढही पड़े, सब पापन की पोट।।
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| 33. | इससे सीस निपिंड की गुहा का उत्तनन (
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| 34. | सीस उतारो भूइं धरो फिर पैठो घर माहि।
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| 35. | जिन विप्रन को पूजि सदा हम सीस नवावैं।
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| 36. | सीस झुका कर होते प्रसन ॥ ३७ ॥
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| 37. | पिंग जटा को भार सीस पै सुन्दर सोहत।
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| 38. | राजा परजा जेहि रूचै, सीस देइ ले जाय।।
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| 39. | सीस उतारे भुइं धरै तब पैठे घर माहिं।।
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| 40. | नहिं जाचत नहिं संग्रही सीस नाइ नहिं लेइ।
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