सुरूप बनाने की कोशिश में विरूप ही नहीं करते बल्कि अन्धकूप में ढकेलते शुभेच्छु! आप यदि स्वतंत्र दृष्टि रखते हैं तो बदनुमा हो जाते हैं...
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दूसरी सौंदर्य-दृष् टि रूप को विभिन्न सरोकारों और संदर्भों के बीच रख कर देखती है और उनसे जुड़ा ऐतिहासिक-सामाजिक-नैतिक बोध ही रूप को सुरूप या कुरूप बनाता है।
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नक्षत्रफल:-सुरूप चमकयुक्त बड़ी आँखें! आकर्षक उभारयुक्त ललाट, कार्यदक्ष, बुद्धिमान, अच्छी नीरोग शक्ति वाला, बातों से प्रभावित करने वाला होता है!
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कर्क राशि में स्थित होने पर जातक मीठी वाणी का, चतुराई से बोलने वाला, सुरूप, दूसरों के कार्य करने वाला तथा यात्रा में क्लेश उठाने वाला होता है |
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तब मुझे इससे बड़ी लज्जा लगती थी ; किंतु बड़े होने पर सोचता रहा हूं कि यदि पुनर्जन्म हो तो मेरे मुख पर सुरूप और पंडितजी के मुख पर विद्रूप इसी प्रकार प्रकट हो।
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यह अनावश्यक नहीं कि वृक्ष-दोहद की महत्वपूर्ण क्रिया जो अनेक स्त्री-क्रिया-व्यवहारों से सम्पन्न होती हो उसमें स्त्री के गायन मात्र से पुष्पोद्गम या वृक्षॊ के विकास के कार्य सम्पादित होने का कोई उल्लेख हो! स्त्री के इस सु-स्वभाव और नमेरु के सुरूप ने अत्यन्त आकर्षित किया मुझे ।
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क्या शबाब था कि फूलफूल प्यार कर उठा, क्या सुरूप था कि देख आइना मचल उठाथाम कर जिगर उठा कि जो मिला नज़र उठा,एक दिन मगर यहाँ,ऐसी कुछ हवा चली,लुट गयी कलीकली कि घुट गयी गलीगली,और हम लुटेलुटे,वक्त से पिटेपिटे,साँस की शराब का खुमार देखते रहे।कारवाँ गुज़र गया, गुबार देखते रहे।
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याद है दिवस की प्रथम धूप थी पडी़ हुई तुझ पर सुरूप, खेलती हुई तू परी चपल, मैं दूरस्थित प्रवास में चल दो वर्ष बाद हो कर उत्सुक देखने के लिये अपने मुख था गया हुआ, बैठा बाहर आँगन में फाटक के भीतर, मोढे़ पर, ले कुंडली हाथ अपने जीवन की दीर्घ-गाथ।
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, क्या सुरूप था कि देख आइना मचल उठा थाम कर जिगर उठा कि जो मिला नज़र उठा, एक दिन मगर यहाँ, ऐसी कुछ हवा चली, लुट गयी कली-कली कि घुट गयी गली-गली, और हम लुटे-लुटे, वक्त से पिटे-पिटे, साँस की शराब का खुमार देखते रहे।
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क्या शबाब था कि फूलफूल प्यार कर उठा, क्या सुरूप था कि देख आइना मचल उठा थाम कर जिगर उठा कि जो मिला नज़र उठा, एक दिन मगर यहाँ, ऐसी कुछ हवा चली, लुट गयी कलीकली कि घुट गयी गलीगली, और हम लुटेलुटे, वक्त से पिटेपिटे, साँस की शराब का खुमार देखते रहे।