सम्बन्धियों पर आधारित गालियाँ जैसे-साला, ससुरा आदि सुनने में ज्यादा अभद्र नहीं लगती.लेकिन शारीरिक अंगों और शारीरिक संबंधों पर आधारित गालियाँ निश्चित ही सभ्य समाज का अंग नहीं कहला सकती.गालियों के नाम पर जिस तरह के शब्दों का प्रयोग इस फिल्म में किया गया है, वह सभ्य, सुशिक्षित समाज के मूंह पर एक तमाचा है.
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बल्कि निष्कर्ष ये भी होगा कि भारत गरीबी भुखमरी और गुलामी की तरफ बढ़ रहा है | आज यह गुलामी हमारी मानसिक और बौद्धिक गुलामी का प्रतीक बन रही है | आज हमारे हाँथों में मोबाइल फ़ोन तो है पर श्रम करने की ताकत नहीं, विकसित बनने की चाह तो है मगर चेतना दृढ़ संकल्पित नहीं, आज भारत साक्षरता प्रतिशत में तो वद्धि कर रहा है पर सुशिक्षित समाज की अवकल्पना से मीलो दूर है.......
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तत्त्वज्ञान के उपर्युक्त चार श्रेणियों में से पहली श्रेणी जो शिक्षा है, यह पूर्णतया भौतिक या लौकिक है जिसके विषय में कमोवेश सारा समाज ही, खासकर सुशिक्षित समाज अच्छे प्रकार से परिचित है और तीसरा जो योग-साधना अथवा अध्यात्म है, को समाज का योगी-साधक अथवा आध्यात्मिक क्रिया वाले जानते हैं अथवा इससे परिचित हैं, मगर पहले और तीसरे के बीच वाला दूसरा जो स्वाध्याय है, की भी वास्तविक जानकारी चौथे तत्त्वज्ञान वाले तत्तवज्ञानदाता को ही स्पष्टत: होती है, पूरे ब्रम्हाण्ड में अन्यथा किसी को भी नहीं ।