प्रतिशाख्यों की रचना बहुत करके सूत्र शैली में की जाती थी इसीलिए प्रातिशाख्यों के लिए प्रायेण ' पार्षदसूत्र' का भी व्यवहार प्राचीन ग्रंथों में मिलता है।
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इस धरोहर को भले ही हमने भुला दिया हो किन्तु वह हमें सतत याद दिलाती रहती है वेदों की अपनी विज्ञान सम्मत सूत्र शैली के माध्यम से ।।
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यद्यपि यह बोनापन का युग है किन्तु प्रज्ञा का घनत्व घटा नही है कोई वामन ही विरत बन जाता है बिंदु सिन्धुत्व धारण कर सकता है एक प्रकार से सूत्र शैली का इसे पुनर्जागरण कह सकते हैं |
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‘माँ '-माया तस्यात्रायते यानि माया से रक्षा करनेवाली ब्रह्म विद्या ….!. नागरी भाषा में लिखे गए इनकी १३ मात्राओं में प्रथम मात्रा ही सर्वाधिक प्रसिद्ध हैं…..!. अलबता सूत्र शैली में लिखा एक नन्हा सा काव्य हैं यह….!.
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सूत्र शैली में संदेश देने वाले मुनि तरूण सागर जी को अपनी वाणी को कड़वे प्रवचन कहने पर इत्मीनान यदि है तो सिर्फ इसलिए कि वे जानते हैं, इंसान की प्रवृत्ति और कभी न बदलने की उसकी जिद इतनी कठिन और जटिल है कि सीधी उंगली से घी निकालना मुमकिन नहीं है।