ऐसा विश्वास है कि सूर्यकिरण त्वचा में प्रवेश कर रुधिर में मिश्रित होकर, सूर्य की भौतिक ऊर्जा से ऊष्मीय ऊर्जा (thermal energy) में रूपांतरित हो जाती है, जिससे रक्त में परिसंचरण करनेवाले कीटाणुओं, जीवाणुओं, तथा विष का नाश होता है।
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यह मानी हुई बात है कि जिस मिट्टी पर प्राकृतिक क्रियाएँ होती है, जल का प्रपात तथा वायु और सूर्यकिरण का संसर्ग होता रहता है, वह कुछ वर्षो में ऐसा रूप धारण कर लेती है जिससे उसके नीचे की भिन्न रूप रंग और गुणवाली मिट्टियों के बहुत से संस्तर हो जाते हैं।
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यह मानी हुई बात है कि जिस मिट्टी पर प्राकृतिक क्रियाएँ होती है, जल का प्रपात तथा वायु और सूर्यकिरण का संसर्ग होता रहता है, वह कुछ वर्षो में ऐसा रूप धारण कर लेती है जिससे उसके नीचे की भिन्न रूप रंग और गुणवाली मिट्टियों के बहुत से संस्तर हो जाते हैं।
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या रिश्तों से गुजरते रास्ते ज्ञान ध्यान किश्ती में सवार कांपता है जब ज्वार उठता है समन्दर में अहसास का प्रसन्न होता है चन्दमा थमाकर तारो भरी थाली चांदनी के हाथ में भोर का सूर्यकिरण सिंदूर से श्रृंगारित करती है स्वागत प्रथम दालान का दीप मद्धम मद्धम प्रदीप्त ज्योति को लीलकर समाहित करता है प्रात: काल में..
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कुछ ही वर्षों बाद राम के घर तेजवंती को माँ-मातारानी ने अपनी तेजोराषी दूसरी शक्ति का वरदान दिया! इस शक्ति का जन्म हुआ! जिसे राम ने नाम दिया: “ सविता! ” सविता मतलब “ सूर्यकिरण! ” The Shining Rays of Sun! गायत्री-मंत्र में “ तत्सवितुरवरेण्यम ” में ' सविता ' शब्द समाहित है!
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और त्रेता में राम के भाई का नाम भी भरत ही था जिसने अयोध्या पर राज्य ' राम की चरण पादुका ' रख कर किया-यानि तीर समान जीवन-दायिनी सूर्यकिरण जो पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के घेरे / ओज़ोन तल को भी ' शिव के धनुष ' समान तोड़ हमको ही नहीं अन्य ग्रहों को भी ऊर्जा प्रदान करती है...:)
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मैं तो हरदम तेरे संग ही रहूंगी कभी उतर कर तेरे ख़यालों में बन कविता तेरे शब्दों में उकरूँगी या फिर बन स्याही तेरी कलम की तेरे कोरे काग़ज़ पर बिखरुंगी यूँ ही हरदम तेरे संग रहूंगी हो शामिल सूर्यकिरण में कभी बन आभा तेरे चेहरे पर उभरूँगी थक कर सुसताने बैठेगा जब तू बन पवन तेरे बालों में फिरूंगी जेसे भी हो बस तेरे संग रहूंगी.
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इस पावन-निर्मल जलधारा को, लहरों को, सूर्यकिरण को, ऊपर के नीले आकाश को, इस स्थान पर बहती हुई पवन की खुशबू को, उस पार से आते हुए मधुर संगीत को, हमारी और उनकी सद्भावना को, आपसी प्रेम दर्शाने वाले मानवीय गुणों को कोई भी दीवार, कंटीला तार, लकड़ी के खम्भे या कोई भी गोली दो भागों में नहीं बाँट सकती।
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वैसे तो मानव-शरीर के लिए आवश्यक विभिन्न पोषक तत्व विटामिन, प्रोटीन, श्वेतसार, वसा, अनिज अत्यादि पृथक-पृथक घी, मक्खन, दही, छेना, मटा पनीर, मांस, मछली, अण्डा, अनाज, दलहन, तिलहन, फल, कन्द-मूल, शाक-सब्जी, सूर्यकिरण, मेवा, खमीर, गुड़, मधु आदि में मिलता है्, लेकिन दूध में सभी पोषक तत्व एक साथ मिलते हैं।
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पराये जल के कण, पराई सूर्यकिरण पराया नीलगगन फिर भी मै जाता तन सतरंगी आभा में, इन्द्रधनुष जैसा बन दिखने में सुन्दर हूँ, लगता हूँ मनभावन ना काया, कोई तन आँखों का केवल भ्रम होता बस कुछ पल का, ही मेरा वो जीवन आपस में फिर मिलते, सब के सब सात रंग मै पाता मूल रूप, बन शाश्वत श्वेत रंग जीवन के इस क्रम में, यूं ही बस रहता खुश मै तो हूँ इन्द्रधनुष