आपने किसी ब्रह्मनिष्ठ तत्त्ववेत्ता महापुरुष की शरण ग्रहण की या नहीं? अनुभवनिष्ठ आचार्य का सान्निध्य प्राप्त कर जीवन को सार्थक बनाने का अंतःकरण का निर्माण करने का, जीवन का सूर्य अस्त होने से पहले जीवनदाता से मुलाकात करने का प्रयत्न किया है कि नहीं? जिसे अपने जीवन में सच्चे संत, महापुरुष का संग प्राप्त हो चुका हो उसके समान सौभाग्यवान पृथ्वी पर और कोई नहीं है ।
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ऐसे मौके आते हैं, जब प्रकृति हमसे भाषा छीन लेती है, तब शायद असली मौन उत्पन्न होता है-वह मौन नहीं जो हमारे बाहर है, बल्कि जो हमें जन्म से मिला है, हमारे भीतर, जो बहुत बाद के वर्षों में-अगर हम सौभाग्यवान हुए-हम अपनी कविता, संगीत, कहानी के भीतर पुनः उगता हुआ देखते हैं, और अपने दुर्भाग्य के दिनों में खो देते हैं.
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जब जेल जाओगे, जेल की मोटी रोटी खाओगे, पछताओगे, सिद्धान्त-दर्शन सब स्वयं भूल जाओगे-।” “नही महाशय! अक्सर डरते हैं, वही मनुष्य जेल जाने से / जो कतराते हैं सदैव सत्यता से आंख मिलाने से-जिसमें साहस, विवेक और आत्मबल व्याप्त होता है / उसी को बेटिकट सफर का सौभाग्य प्राप्त होता है-।” इतना कहकर नौजवान मुस्कुराया, जेल की अहमियत से, उन्हें अवगत कराया, बोला-“जेल जाना तो, तीर्थाटन करने के समान है / जेल जाने वाला पत्येक व्यक्ति महान है, परम सौभाग्यवान है-।