' ' डॉ. जोशी की बात पर यकीन करें तो मानना पड़ेगा कि ' खोये हुए अवसरों के इतिहास पर अभी तक पर्दा पड़ा हुआ है ', किंतु उनके उपरोक्त विवेचन से जितना पर्दा हटता है, उससे सापफ है कि न केवल रूस में, बल्कि भारत जैसे देश में भी कम्युनिस्टों, प्रगतिशीलों द्वारा स्तालिनवाद को ही मार्क्सवाद का पर्याय समझ लिया गया।
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मिसाल के लिए द्रष्टव्य है विवेचन का एक टुकड़ा-' ' भारतीय राजदूत होने के नाते के. पी. एस. मेनन इस बात के प्रत्यक्षदर्शी थे कि स्तालिनवाद से प्रभावित और संचालित नीतियों ने भारत के राष्ट्रीय आंदोलन के चरित्रा और महत्व तथा गाँधी जैसे महान नेता के बारे में रूस की समझ और मूल्यांकन पर कितना नकारात्मक और दोनों के लिए अनिष्टकारी प्रभाव डाला।