स्त्री की इज्जत की बात, उसके गर्भ में पलने वाले बच्चे से जुड़ी होती है और यह कैसे कोई समाज मान ले कि उनकी औरतें विधर्मी, बलात्कारियों के बच्चे पालें? आज मानव अधिकारों, स्त्री पुरुष समानता बनाने की कोशिशें, जात पात के बँधनों से बाहर निकलने की कोशिशें, यह सब इस लिए भी कठिन हैं क्योंकि बचपन से घुट्टी में मिले सँदेश हमारे भीतर तक छुपे रहते हैं और भीतर से हमें क्या सही है, क्या गलत है यह कहते रहते हैं.
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एक दो नायिकाओ के इंटरव्यू मैंने भी सुने है क्या करेंगी आप यदि आपको पता लगे कि बॉण्ड फिल्मो में काम करने वाली नायिकाएँ स्त्री पुरुष समानता, नारीवाद आदि के प्रश्नो पर वैसी ही सोच रखती हो या उनसे भी ज्यादा समझदार है जिन्होने बॉण्ड फिल्मस् में काम करने से मना किया हो? फिर ये जबरदस्ती का वर्गीकरण क्यों कि काम नहीं किया तो नारीवादी वर्ना बाकी तो ' बस ऐसे ही काम किए जा रही है और कुछ सोच ही नहीं सकती '? वाह!
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उदाहरण सहित: मेरा मानना है कोई भी रिश्ता मित्रता के बिना नहीं निभाया जा सकता, जैसे कहते हैं ना की फूल और उसकी सुगंध, इसमें सुगंध मित्रता है और फूल है रिश्ता, अर्थात पति पत्नी मित्र की तरह रहें, इससे विश्वास-घात जैसी पारिस्थिति से दो गुनी सुरक्षा मिलती है, क्योंकि कोई भी अपने पति / पत्नी को धोखा देने की सिचुएशन आने पर एक नहीं दो रिश्तों (शादी और दोस्ती) को बीच में पायेगा / पायेगी, और स्त्री पुरुष समानता भी मेन्टेन रहेगी..... इसकी संभावना बढ़ती लगती है