और यह शायद अतिशयोक्ति नहीं होगी कि ऐसे ही दुस्साहसी २ ६ वर्षीय युवा अल्बर्ट आइन्स्टाइन ने अपने ' विशेष आपेक्षिक सिद्धान्त ' की घोषणा की थी, फ़िर पुन: निर्विशेष आपेक्षिक सिद्धान्त की घोषणा की थी ; और शायद इसी दुस्साहस की कमी के कारण वही साहसी किन्तु (अब दस वर्ष कम युवा) ३ ६ वर्षीय आइन्स्टाइन ने प्रसारी ब्रह्माण्ड के स्थान पर ब्रह्माण्ड का प्रचलित ' स्थायी अवस्था सिद्धान्त ' ही प्रतिपादित किया था।