अब ज़ाहिर है कि बाबा के पास न तो धर्म की नैतिक शक्ति थी, न गुरु की मर्यादा और न ही योगी की स्थितप्रज्ञता.
32.
सुख-दुख में निरपेक्ष भाव से रहते हुए अपनी सहजता को कायम रखना स्थितप्रज्ञता है जो विशेष रूप से विपत्ति के क्षणों में काम आती है।
33.
@ अनिल रघुराज-सही कह रहे हैं, स्थितप्रज्ञता के दर्शन तो 'पानालीन' होने में दिखते हैं! @ अरुण-आपने असली मुद्दा पकड़ा, जिसपर मैं बेचैन था।
34.
इसी प्रकार यदि व्यक्ति ने अपने जीवन में ज्ञान, भक्ति या कर्म मार्ग पर चलते हुए परम सत्य को प्राप्त कर लिया है (स्थितप्रज्ञता)...
35.
हम गांधीजी के जीवन में यही बात उत्तरोतर उन्नत होती हुई पाते हैं … गांधीजी के जीवन चरित्र में स्थितप्रज्ञता के दर्शन यहाँ वहां होते ही हैं ….
36.
वे अपना दुख किससे बांटें? ज़रूरत है स्थितप्रज्ञता की उस स्थिति को प्राप्त करने की जहां न सुख में अति-उत्साह है, न दुख में टूटने की आशंका।
37.
स्थितप्रज्ञता एवं ब्राह्मीस्थिति जिस व्यक्ति की होती है उस व्यक्ति की इंद्रियों एवं इंद्रिय-भोग के विषयों में जो संबंध होता है, उसका वर्णन गीता में इस प्रकार किया गया है-
38.
हाँ, आत्मज्ञान, आत्मदर्शन, तत्त्वज्ञान, ब्रह्मज्ञान, स्थितप्रज्ञता, गुणातीतता और ज्ञानस्वरूप भक्ति, (चतुर्थभक्ति) की दशा में दिल तथा दिमाग दोनों ही हिल-मिल जाते हैं।
39.
जो व्यक्ति भीषण झंझा वा त में भी संतुलन न खोए, अपितु धीरता से उसे प्रेरणादायी समझ क र संयत रहे, उसकी अन्तर्निहित स्थितप्रज्ञता पर किसे संदेह होगा?
40.
यह मन जब तरह तरह के अभावों की भावना से मुक्त होगा और अपने भीतर अपने ही से तुष्ट यानी तृप्त रहेगा, तब हमें स्थितप्रज्ञता अथवा ब्राह्मीस्थिति अथवा ब्रह्मचर्य प्राप्त होगा।