आप सिर्फ बकवास ही लिखते है, या कुछ बदलाव लाने वाला भी लिखते है, ऐसा कुछ जिसे पढ़कर पाठक प्रेरित हो, स्फुर्ति महसूस करे।
32.
उन्होंने कहा कि इतनी महान हस्ती एवं सादे व्यक्तित्व के धनी डॉ. कलाम के सिरसा आगमन से युवाओं में एक नई स्फुर्ति का संचार हुआ है।
33.
ऊंटों की सुस्त रफ्तार के लिए लगाम कसने में दण्ड का भाव भी स्पष्ट है और चमक, प्रकाश, स्फुर्ति जैसे अर्थों में दाना-रातिब खाकर जीवनीशक्ति से परिपूर्ण होने का भाव भी।
34.
ऊंटों की सुस्त रफ्तार के लिए लगाम कसने में दण्ड का भाव भी स्पष्ट है और चमक, प्रकाश, स्फुर्ति जैसे अर्थों में दाना-रातिब खाकर जीवनीशक्ति से परिपूर्ण होने का भाव भी।
35.
रामविलास की आलोचना शैली ध्वंसात्मक है, निर्माण के लिये वे स्फुर्ति नहीं दे पाते, यह मैं भी स्वीकार करता हूं … ' फिर थोड़ा आगे चलकर नागरजी एक अच्छे आलोचक की पहचान बताते हुए लिखते हैं ‘
36.
उन्मत्त होते ही जो लोग दूसरों को तकलीफ देने पर उतारू हो जाते हैं-अर्थात् उन्माद के कारण दूसरों पर अत्याचार करने की स्फुर्ति जिन लोगों में सहसा जागृत हो उठती है-उनका उन्मत्त होना मानो दूसरों का अपराध करना है।
37.
शब्द टूट गये विचार बूढे हो गये भावनाएं बिखर गयी कल्पनाएं रूठ गयीअब कविता कैसे बनेगीइसी का नाम वृद्धावस्था है पहले बनता था एक स्फारउन्मेष से उद्भासित होते थे उद्गार स्फुर्ति से आते थे विचारशब्दों को मिलता था आकारइधर से उदर विचरते थे मनोभाव रचनात्मक होते थे काव्यप्राणों में स्पन्दित होता था श्वासबनता था एक वास्तविक शब्द-विन्यासउसी में होता था मेरा यौगिक उल्लास क्रियात्मक भावों से करते थे सृजनशब्द रचना का होता था विमोचन यह सब विस्मृत हुआविस्थापन में ही वृद्धा आ गयी।
38.
पँचमहाभूतमेँ से जल तत्व आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी से मानव शरीर सूक्ष्म रुप मेँ ग्रहण करता है उसीसे जल तत्व से हमारा कुदरती सँबध शापित हुआ है-जल स्नान से हमेँ स्फुर्ति व आनण्द मिलता है-थकान दूर होकर मन और शरीर दोनोँ प्रफुल्लित होते हैँ और जब ऐसाअ जल हो जो प्रवाहमान हो, मर्र मर्र स्वर से कल कल स्वर से बहता हो, सँगीत लेकर चलता हो, शीतल हो तब तो प्रसन्नता द्वीगुणीत हो जाती है!
39.
पँचमहाभूतमेँ से जल तत्व आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी से मानव शरीर सूक्ष्म रुप मेँ ग्रहण करता है उसीसे जल तत्व से हमारा कुदरती सँबध शापित हुआ है-जल स्नान से हमेँ स्फुर्ति व आनण्द मिलता है-थकान दूर होकर मन और शरीर दोनोँ प्रफुल्लित होते हैँ और जब ऐसाअ जल हो जो प्रवाहमान हो, मर्र मर्र स्वर से कल कल स्वर से बहता हो, सँगीत लेकर चलता हो, शीतल हो तब तो प्रसन्नता द्वीगुणीत हो जाती है!