परन्तु लौकिक कवियों की अभिव्यंजित राष्ट्रीयता में तथा वैदिक संहिताओं में अभिव्यक्त राष्ट्रीयता में एक मौलिक अन्तर यह है, कि लौकिक कवियों का राष्ट्र प्रेम अपने-अपने राज्यों अथवा देशों और स्वदेशीय प्रजा के कल्याण तक सीमित है, जबकि वैदिक संहिताओं का राष्ट्र-प्रेम सम्पूर्ण वसुधा को और प्राणीमात्र को अपने आंचल में समेटे हुए है।
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जब हमारे स्वदेशीय ग्रन्थ ऐसे अक्षुण ज्ञान से भरे पड़े है जिसका अनुकरण कर आज विदेश विकशित देशो की श्रेणी में स्थान पा रहा है और हम इसकी उपेक्षा कर अभी भी विकाश शील ही है, तो फिर मै ऐसे संपन्न ज्ञानोदधि Astrology को छोड़ कर Astronomy जैसे एकांगी सिद्धांत का अध्ययन क्यों करूँ? सूरदास प्रभु काम धेनु तजि छेरी कौन दुहावे.