सुबह का पहला गर्मागर्म समाचार, गर्मागर्म चाय के साथ-यही विलासिता थी स्वप्नमय बाबू की जो धीरे-धीरे जिद में बदलती गई थी।
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सुबह का पहला गर्मागर्म समाचार, गर्मागर्म चाय के साथ − यही विलासिता थी स्वप्नमय बाबू की जो धीरे धीरे जिद में बदलती गयी थी।
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ठीक पढ़ता था, जहाँ नहीं पढ़ पाता था स्वप्नमय बाबू अंदाज से ठीक करवा देते थे-खट् खटा खट् खुट् टिं ग...
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स्वप्नमय बाबू भला क्या बोलते? बोले घोष दा ही हंसते हुए − ÷÷उ सब बात नहीं है, बैंक वाला तैयार है, बोला कुछ मोर्टगेज करना होगा।
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स्वप्नमय बाबू भला क्या बोलते? बोले घोष दा ही हँसते हुए-' उ सब बात नहीं है, बैंकवाला तैयार है, बोला कुछ मोर्टगेज करना होगा।
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घोष दा ने हाथ पकड़ा था स्वप्नमय बाबू का− पसीने से भींगा था हाथ− फुसफुसाहट भरी आवाज में कहा− ÷÷रास्ता में बैंक का रिकवरी एजेण्ट लोग बहुत बेइज्जत किया।
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' इस बार तो पड़ोस की महिलाओं को दी गई ये गर्वमिश्रित सूचनाएँ अपने कमरे में धीमी आवाज में रेडियो सुन रहे उनींदे स्वप्नमय बाबू तक भी पहुँच रही थीं।
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घोष दा ने हाथ पकड़ा था स्वप्नमय बाबू का-पसीने से भींगा था हाथ-फुसफुसाहट भरी आवाज में कहा-' रास्ता में बैंक का रिकवरी एजेंट लोग बहुत बेइज्जत किया।
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भावानुवाद गहरी रात नशीला चांद सन्नाटा बातें न करो प्रेम...बस प्रेम कभी-कभी पत्तों की कानाफ़ूसी फिस-फिस बड़े दूर आकाश में तारों की मजलिस दो हृदय स्वप्नमय अनुभूति में बाधा न बनो प्रेम बस...
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प्रसन्न थीं पत्नी− घर में सामानों की तादाद बढ़ती देख कर− टी. वी. का गुणगान तो कर ही चुकीं− फ्रिज भी आ चुका था और यह स्वप्नमय बाबू को उससे टकराने पर मालूम हुआ।