निष्पक्ष दृष्टि से यदि देखा जाये तो बाबा अपने योग-शिविरों में परित्राणाय साधूनाम् अर्थात् सज्जनों की स्वास्थ्य-रक्षा हेतु उन्हें प्राणायाम सिखाते हैं साथ ही साथ अपने क्रान्तिकारी व्याख्यानों के माध्यम से सारे देश को ही नहीं, अपितु पूरे विश्व को यह सन्देश देकर कि सभी दुर्जनों, भ्रष्टाचारियों व बलात्कारियों के लिये प्राण-दण्ड की व्यवस्था संविधान में हो, एक प्रकार से विनाशाय च दुष्कृताम् का पवित्र कार्य पूरे मनोयोग, सच्ची निष्ठा व दृढ संकल्प के साथ करने में अहर्निश डटे हुए हैं।