तो यह कहकर बात को आगे बढाया कि कई बार हम स्वंय भी तो खुद की समझ में नहीं आते तो क्या हमदुरूह हो जाते है?
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मैं ही सबकुछ हूँ या मुझमें ही सब बसा है, ये दोनो चीज़े मानकर हम स्वंय को गिरावट में ले जाने की क़गार तक आते है।
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जब तक हम स्वंय नहीं उठेंगे तब तक कुछ नही हो सकता उसके लिये जहाँ भी हमे व्यवस्था मे कुछ खामी दिखे उसके खिलाफ अपनी आवाज़ बुलन्द करनी पडेगी।
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जब तक हम स्वंय नहीं उठेंगे तब तक कुछ नही हो सकता उसके लिये जहाँ भी हमे व्यवस्था मे कुछ खामी दिखे उसके खिलाफ अपनी आवाज़ बुलन्द करनी पडेगी।
35.
बस जरूरत है तो इस बात की कि हम स्वंय गंगा में ऐसा कुछ न डाले जिससे गंगा प्रदुषित हो दूसरो के लिए मोक्ष के बजाए कष्ट का कारण बने।
36.
घर पर तेनाली राम की पत्नी सदैव शिकायत करती रहती, “ हम स्वंय तो ठीक से रह नहीं पाते फिर इन हाथियों के लिए कहॉ रहने की व्यवस्था करें?
37.
एक बार उसने लिखा था कि हम स्वंय से झूठ बोलते हैं और बहुत उत्कंठा से आशा करते हैं कि दूसरे हमपर विश्वास कर लें जबकि दूसरे हमारी बेवकूफ़ी पर मुस्कुरा रहे होते हैं।
38.
ध्यान के रुप में हमारे पास समस्त तालों की वह चाबी है, जिससे हम स्वंय के, सहज में सम्पर्क में आने वालों के, समाज के दुख व अशांति दूर कर सकते हैं ।
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सबसे पहले तो हमें यह जान लेना चाहिए कि यह हम स्वंय हैं जो अपने व्यवहार का चयन करते हैं, जब हमारा व्यवहार अच्छा और सही होगा, तो हमारे दृष्टिकोण भी परिवर्तित हो जाएं गे।
40.
आवश्यक तो नहीं कि हर कोई उन प्रश्नों के संसार में प्रवेश करे, उसे जिए और तब आप जिन सन्दर्भों में उनके उत्तर चाहते हैं, उनके उत्तर दे.-> हमारे अपने अनुभवों के संसार में केवल हम स्वंय जीते हैं.