माहेश्वरियो के 72 गोत्र में से 15 खाप (गोत्र) के माहेश्वरी परिवार अलग होकर ग्राम काकरोली राजिस्थान में बस गए तो वे काकड़ माहेश्वरी के नामसे पहचाने जाने लगे (इन्होने घर त्याग करने के पहले संकल्प किया की वे हाथी दांत का चुडा व मोतीचूर की चुन्धरी काम में नहीं लावेंगे अतः आज भी काकड़ वाल्या माहेश्वरी मंगल कारज (विवाह) में इन चीजो का व्यवहार नहीं करते है.
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उदाहरण के लिये “ केतुकूट ” योग-जिससे छोटे छोटे बच्चो में मृगी या औरतों में योषा अपष्मार (Hysteria) क़ी बीमारी हो जाती है, के निवारण के लिये जो बांह या गले में यंत्र बांधा जाता है, उसमें मकोय के पौधे क़ी जड़, अडूलसा के पुष्प, अमलतास क़ी जड़, सेमल के बीज, समुद्रफेन, सुहागा एवं हाथी दांत का चूर्ण मिश्रित कर नागफनी (Cactus) के पके लाल पुष्प के रस में पका कर ताम्बे के ताबीज़ में भर देते है.