बड़े ही हास्यास्पद ढंग से मुसलमानों के मतों का प्रलोभन या लालीपाप दिखाकर जिस ढंग से सैय्यद शहाबुद्दीन ने नरेन्द्र मोदी से गुजरात दंगों की माफ़ी मांगनें को कहा है वह अत्यंत ही क्षोभ जनक और चिढ व खीझ उपजानें वाला विषय लगता है.
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दुश्वारियों व गरीबी के लिए वे हास्यास्पद ढंग से कहीं हिन्दुओं, तो कहीं ईसाईयों, तो कहीं चीनियों तो कहीं रूसियों को जिम्मेदार ठहराकर खून-खराबा, अलगाववाद-आतंकवाद आदि में लिप्त रहकर अपना व अपने परिवार का भारी नुकसान करते हैं तथा इस खुशफ़हमी में रहते हैं कि वे इस्लाम व अल्लाह (नितांत काल्पनिक चीज) की बड़ी सेवा कर रहे हैं |
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राष्ट्रवादी हसरतें इस तकनीकी क्रांति के आगे खुद को असहाय पाती हैं, झंडे, नारे और जुलूस वाले जनांदोलन अब इसके आगे पुराने लगते हैं, लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं को इसके आगे अपने औजार नये सिरे से तलाशने और तराशने पड़ रहे हैं, प्रशासकीय गोपनीयता छिन्न-भिन्न हुई जा रही है और साम्राज्यवादी परियोजनाएं विकीलीक्स जैसे खुलासों के बाद बुरी तरह हास्यास्पद ढंग से दुनिया के सामने खुल कर सामने आ रही हैं.