क्या हमारी तरह आपके यहां भी लड़ाई के खर्च का बजट लंबा-चौड़ा और लिखाई-पढ़ाई के ख़र्च का बजट कुछ नहीं सा नहीं होता? क्या आपके यहां भी लोगों को, बिना आह-ऊह का अवसर दिए, इस तरह हुक्म मानना नहीं सिखाया जाता कि होते-होते वे हुक्म बजा लाने के ऎसे आदी हो जाएं, जैसे फौ़जी?