तो एक ही अंडज जुड़वां बच् चों को दो कमरों में बंद कर दिया गया, फिर दोनों कमरों में एक साथ घंटी बजायी गयी है और दोनों बच् चों को कहा गया है, उनको जो पहला विचार जो ख् याल आता है वह उसे कागज पर बना लें।
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यह पूरी सृष्टि (अंडज, पिंडज, उतभुज और सेतज) और इसकी सत्ता में कोई ऐसी चीज नहीं जिसका दूसरा पक्ष न हो, हर एक चीज के दो पक्ष हैं और एक का दूसरे के साथ अन्योन्यश्रित सम्बन्ध हैं, इसे हम यूं भी कह सकते हैं कि एक के बिना दूसरे की कल्पना नहीं की जा सकती.
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इस अंडज ब्रम्हाण्ड के किसी ओर से निकल पड़े चमकाते अपनी तलवार लेकर ये ज्वाल, ये आलोक, ये उबाल कर न सका कोई क्षतिग्रस्त न कोई पाया तुम्हें लपेट न ही तुम सुस्ताये बन अतिथि किसी के चल रहा तुम्हारा यात्रा निर्विघ्न जाने सृष्टि के किस काल से देखा तुमने क्रोधित मुनि कपिल का शाप फिर देखा भागीरथ को स्तुति में लीन आज देख रहे यहाँ गंगा का बहता चाप
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अक्षर र का रूप मनुष्य के वास्तविक रूप में प्रतीक होने के लिये प्रयोग मे लाया गया है जैसे अक्षर आकाशीय विचरण करने वाले जीव ल रूप में पानी के अन्दर रहने वाले जीव व धरती पर विचरण करने वाले पशु पक्षी रूप जो केवल उदर पूर्ति के प्रति विचरण करते है, बाकी श ष और स रूप मे अंडज स्वेदज आदि जीवो के प्रति बताये गये है का रूप जाना जा सकता है।
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क्या कर लेंगे हमजानकर? अब यह तो नहीं हो सकता कि हिन्दू को ईश्वर बनाये, मुसलमान कोअल्लाह और ईसाई को गॉड! भाई इतनी तो अवमानना न कीजिये परमपिता की! इससे कहीं नैतिक है नास्तिक बन जाना | एक पूरक संबोधन अंशुमान जी से | जन्म देने का आशय कोई ज़रूरीनहीं अंडज-पिंडज जैसा | विचार के रूप में भी / बल्कि इसी रूप में हीईश्वर ने जन्म लिया | क्या इस बात पर एक हास्य संभालेंगे? ” जो जन्म न ले वह हो ही कैसे सकता है?
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जी हाँ, पात्रों की तो भरमार है-आदि, तारा भाई-बहन,रिया और फ्रैंसिस विस्पला के कोखज नहीं केवल अंडज और जेनेटिकली माडीफायिड पुत्र-पुत्री,सिवान भाऊ का चहेता पुलिस अधिकारी प्रणय,सिवान की पत्नी उषा,संस्कृत अध्यापक अय्यर जी,सिवान की बहन सीता तथा और भी ढेर सारे गौण और मुखर पात्र-ये सब उपन्यास में आते रहते हैं और कथानक आगे सरकता रहता है कभी मंथर तो ज्यादातर तीव्र गति से.....लेकिन जिस कुशलता और सिद्धहस्तस्ता से उपन्यासकार ने इन ढेर सारे पात्रों को कथानक में बुना है वह काबिले तारीफ़ है.