प्रत्येक के केंद्र नामक एक रोमन शहर था मंच आदि सबसे महत्वपूर्ण सार्वजनिक भवनों पर स्थित था, प्रमुख मंदिरों,-यूनानी अगोरा के विपरीत तो प्रतिनिधि के रूप में कार्य किया, जो ज्यादा एक बाजार वर्ग, जो नहीं था,,
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मंगत रवीन् द्र की छत् तीसगढ़ी कहानी अगोरा के आरंभ में-' ' थुहा अउ पपरेल के बारी भीतर चर-चर ठन बिही के पेड़..... गेदुर तलक ल चाटन नई देय '' गेदुर शब् द इस तरह, बिही (अमरूद) के साथ प्रयुक् त हुआ है।
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शहरों अनियोजित विकास, की विशेषता है जो ऐसा नहीं कर स्पष्ट रूप से परिभाषित सीमाओं और किलेबंदी, अलग करने के लिए और असंबंधित planistycznie है अगोरा, (पर अक्सर उचित शहर के बाहर स्थित मंदिर इमारतों akropolach अनुकूल स्थलाकृतिक स्थितियों का स्थान, और सादगी पर निर्भर करता है) और घरों, भी आदिमवाद, आवासीय भवनों.
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इनमें गांव जागेश्वर (अल्मोड़ा), अगोरा, डोडीताल (उत्तरकाशी), माटाड और उसका सेटोलाइट स्टेशन (उत्तरकाशी), चेखनी बोरा (चंपावत), कोटी इंड्रोली (गढ़वाल), माणा (चमोली), सारी (रु द्रप्रयाग) आदि कैलाश (नैनीताल), पदमपुरी (नैनीताल), नानकमत्ता (ऊधमसिंहनगर) और त्रिजुगीनारायण (रु द्रप्रयाग) प्रमुख रूप से शामिल हैं।
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शुभंकर के बारे में छपी उस खबर के साथ, पढ़ाई की खातिर किए जाने वाले उनके संघर्षों का भी जिक्र किया गया था, और उनके एक मास्टर ने यह भी कोट किया था कि, ” देश के एक लाल थे लाल बहादुर शास्त्री, जो केरोसिन न होने पर पढ़ाई के लिए चाँदनी रातें अगोरा करते थे, और दूसरा लाल है शुभंकर मिश्रा, जिसने किताब कापियों के खर्च के लिए अखबार तक बेचने में शर्म नहीं की।
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बालको के कंपनी संवाद महाप्रबंधक बी. के. श्रीवास्तव ने स्वागत उद्बोधन में बताया कि छत्तीसगढ़ सरस्वती साहित्य समिति के सचिव महावीर प्रसाद चंद्रा ‘ दीन ' द्वारा शेक्सपीयर के नाटक ‘ ए मिडसमर नाइट्स ड्रीम ' के छत्तीसगढ़ी भावानुवाद ‘ मया के रंग ', समिति के कोषाध्यक्ष रविंद्रनाथ सरकार रचित काव्य संग्रह ‘ सुबह का सूरज ', समिति के पदाधिकारी लोकनाथ साहू रचित नाट्य संकलन ‘ रंगविहार ' और समिति के पूर्व अध्यक्ष प्रमोद आदित्य रचित काव्य संग्रह ‘ अगोरा ' का प्रकाशन बालको के सौजन्य से हुआ है.