अब हम उस तीसरे पक्ष की बात करते हैं जिस पक्ष ने अज्ञेयवाद बनाम नियतत्ववाद की बहस में एक द्वन्द्वात्मक भौतिकवादी हस्तक्षेप किया।
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हालाँकि बाद में आइंस्टीन ने दो अन्य वैज्ञानिकों पोडोल्स्की और रोज़ेन के साथ मिलकर दिखलाया कि अज्ञेयवाद के अतिरेकपूर्ण दावे किसी रूप में ग़लत हैं।
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जैसा कि जापानी माक्र्सवादी भौतिकशास्त्री सकाता ने कहा था, एक वैज्ञानिक को पहले से (एप्रायोरी) द्वन्द्वात्मक होना चाहिए, वरना उसकी नियति नियतत्ववाद या अज्ञेयवाद है।
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हालाँकि बाद में आइंस्टीन ने दो अन्य वैज्ञानिकों पोडोल्स्की और रोज़ेन के साथ मिलकर दिखलाया कि अज्ञेयवाद के अतिरेकपूर्ण दावे किसी रूप में ग़लत हैं।
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आज का संकट भौतिकवाद के विरोध में खड़ी दार्शनिक धारा भाववाद और इसकी अलग-अलग शाखाओं जैसे कि नवकाण्टवाद, माखवाद, अज्ञेयवाद इत्यादि से जुड़ता है।
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एक अज्ञात के समझ आत्मसमर्पण और उसे अज्ञेय का दजर्ा देने का छोर है (अज्ञेयवाद), और दूसरा, अज्ञात के खि़लाफ़ एक नियतत्ववादी प्रतिक्रिया।
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संकट का इतिहासः नियतत्ववाद बनाम अज्ञेयवाद और द्वन्द्वात्मक भौतिकवादी हस्तक्षेप 20 वीं शताब्दी की शुरुआत से ही भौतिकी के ‘ संकट ' की शुरूआत हो चुकी थी।
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अगर इस द्वन्द्व को न समझा जाये तो वैज्ञानिक के तौर पर आप या तो नियतत्ववाद के गड्ढे में जाकर गिरेंगे या फिर अज्ञेयवाद की खाई में।
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इसी आभासी अज्ञेयता का इस्तेमाल कभी सर्वखण्डनवाद, संशयवाद, अज्ञेयवाद, ईश्वरवाद तो कभी सामाजिक विज्ञान के दायरे में उत्तर-आधुनिकतावाद को जीवन देने के लिए किया जाता है।
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4. समाहारः ”संकट“ के कारक आज का संकट भौतिकवाद के विरोध में खड़ी दार्शनिक धारा भाववाद और इसकी अलग-अलग शाखाओं जैसे कि नवकाण्टवाद, माखवाद, अज्ञेयवाद इत्यादि से जुड़ता है।